ऋतुराज बसंत अरविंद अकेला

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ऋतुराज बसंत

गये दिन अब वर्षा,शरद के,
प्रिय ऋतुराज बसंत हैं आये,
हरियाली लगी इनके स्वागत में,
होठों पर मुस्कान हैं छाये।
गये दिन अब वर्षा,शरद के…।

लगी चहुँओर चिडियाँ चहकने,
लोंगो के मन लगे बहकने,
लगा चकोर जब चाँद को चाहने,
“अकेला” दिल झुम-झुम गाये।
गये दिन अब वर्षा,शरद के…।

लगे लोग अब सजने संवरने,
तन मन भी अब लगे थिरकने,
चढने लगी चहुँओर,फगुनाहट,
गालों पर लाली नजर आये।
गये दिन अब वर्षा,शरद के…।

पेड़ों पर नये-नये पत्ते आने लगे,
सरसों के फूल मन को भाने लगे,
गाने लगे लोग राग रंग बसंत के,
आम के पेड़ों पर मंजर निकल आये।
गये दिन अब वर्षा,शरद के…।

मुस्कुराने लगी अब गाँव की गोरी,
करने लगी खूब हंसी-ठिठोरी,
लगाने लगे लोग रंग-अबीर गालों पर,
देखकर यह मन खिल-खिल जाये।
गये दिन अब वर्षा,शरद के…।
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अरविन्द अकेला

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