घरवाली का हुक्म है , जाओ जी बाजार ।
लाओ करवा चौथ पर , अच्छा सा उपहार ।।
अच्छा सा उपहार , चलेगा नहीं बहाना ।
कर दूंगी हड़ताल , नहीं यदि कहना माना ।।
कहे विप्र राजेश , जेब है अपनी खाली ।
कैसे माने मांग , अड़ी जिद पर घरवाली ।।
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घरवाली कहने लगी , सुन लो जी भरतार ।
व्यूटी पालर जाऊंगी , लाओ पांच हजार ।।
लाओ पांच हजार , चौथ करवा की आई ।
करवाना श्रंगार , लगे बालों में डाई ।।
कहें विप्र राजेश , चाय की पकड़ा प्याली ।
पूरे पांच हजार , गई ले कर घरवाली ।।
घरवाली ने खींचकर , मार बेलन चार ।
पर्व मेरा ऐसा मना , क्या बतलाऊं यार ।।
क्या बतलाऊं यार , हुए उसके दो टुकड़े ।
बैठे है दिल थाम , कहें क्या अपने दुखड़े ।।
कहें विप्र राजेश , जेब थी अपनी खाली ।
दे न सके उपहार , अड़ी जिद पर घरवाली ।।
राजेश तिवारी ‘मक्खन’
झांसी उ प्र