परम आदरणीय कवि रामधारी सिंह ‘ दिनकर ‘ जी को उनकी जयन्ती के अवसर पर सहृदय सादर कोटिशः नमन है तथा उनकी अतीव कृपा हम सब पर बरसती रहे यही हमारी उनसे कामना है ।
कलियुग में रामरूप धारण कर ,
इस भारतीय जब धरा पर आए ।
हर्षित पुलकित तब यह धरा थी ,
जब वे रामधारी ही थे कहलाए ।।
जन्म लिए थे वे क्षत्रिय कुल में ,
सिंह उनका टायटिल लगा था ।
हुई बारिश सुनहली किरणों की ,
जब तम भगा दिनकर जगा था ।।
तम को भगा ज्योति थे बरसाए ,
दुनिया को वे थे प्रकाश में लाए ।
मानवता की सुमधुर खुशबू से ,
वसुन्धरा को तब थे वे नहलाए ।।
दिए दिनकर आजीवन उजाला ,
एक दिन दिनकर दिनकरांत हुए ।
विश्व को दिन का उजाला देकर ,
स्वयं तिमिर में जाकर शांत हुए ।।
अंतर्मन का तिमिर भगानेवाले ,
तम भगा अंतर्ज्योति जगानेवाले ।
कोटि कोटि नमन तुम्हें है हमारा ,
अंतर्तम भगा वाह्यतम जानेवाले।।
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।