समीक्षा : *शब्दोपहार( आ. संगीता चौबे ‘पँखुड़ी’)*.
समीक्षक-सुधीर श्रीवास्तव
भारत की बेटी आ.संगीता चौबे पंखुड़ी जी का सूदूर विदेशी सरजमीं अबूहलीफा (कुवैत) में रहकर भी हिंदी और हिंदी साहित्य के लिए समर्पण नमन योग्य है।जो उनकी राष्ट्र ,हिंदी और हिंदी साहित्य के प्रति प्रेम, लगाव, श्रद्धा को दर्शाता है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है।
साहित्यिक पटल नव साहित्य परिवार भारत ने उनके जन्मदिन(26 सितं.) पर शब्दोपहार के रुप में उनकी रचनाओं को संग्रहीत कर काव्य संकलन के रुप संपादित, प्रकाशित, विमोचित कर उन्हें अविस्मरणीय उपहार सौंपकर शानदार तोहफा दिया है।जिसे अनूठा कदम ही कहा जायेगा।
आकर्षक मुखपृष्ठ पर आ. पँखुड़ी का मुस्कराता चित्र, अनुक्रमणिका, सं.मंडल का चित्र परिचय, प्रधान सं. आ. हंसराज सिंह हंस की कलम से में उनकी रचनाओं की सुगंध देश, विदेश में फैलने का विश्वास, सं. आ.अमित बिजनौरी का संपादक के बोल में सात समंदर पार रहकर भी हिंदी की सेवा की तारीफ, संरक्षक आ. सुधीर श्रीवास्तव के संरक्षक उवाच में उनके कोरोना की पीड़ा के बीच भी साहित्य प्रेम के जज्बे की रचनाधर्मिता के प्रति सजगता सहित सलाहकार आ. नरेश चंद्र द्विवेदी शलभ जी का ‘है जज्बा जिसके सपनों में, जगत को यों सजाने का,हंसी हर होंठ पर लाकर, पंख से आँसू सुखाने का’, वरि. कवयित्री आ. दीपांजली दूबे दीप जी की उनकी रचनाओं की संवेदनशीलता को महसूस करने की स्वीकृति उनके व्यक्तित्व,कृतित्व को रेखांकित करता है।
लेखिका की कलम से पंखुड़ी जी के शब्दों में ‘कविता लिखना भी एक कला है,कवि कलम से ये कमाल करते हैं,कागज के पन्नों पर मनोभाव का,तलवार की धार सा वार करते हैं’, से अपने मनोभावों का खुला चित्रण करने के साथ कोरोना पीड़ा और प्रकृति से छेड़छाड़ की के परिणाम की सीख के साथ सोशल मीडिया से मिले अवसरकी ग्राह्यता की स्वीकार्यता को महसूस करना उनकी संवेदना, सच को स्वीकार करने का हौसला दिखाता है।
अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्या सरल, सुसंस्कृत लेखिका के शानदार जीवन परिचय में विविध मंचों से संबद्धता, रचनाओं की स्वीकृति, सम्मान और दर्जनों संकलनों का प्रकाशन, 2020 में भारतीय रेलवे द्वारा उनकी रचना को स्वीकार/ वीडियो बना कर लंबे समय तक प्रसारित करने को बड़ी उपलब्धि मानना उनके कृतित्व ही नहीं व्यक्तित्व को भी दर्शाता है। संकलन की रचनाओं में माँ शारदे की स्तुति के साथ ‘मौन हूँ अनभिज्ञ नहीं’ उनकी सजगता को दर्शाता है तो ‘बंदी जीवन भी क्या जीवन है’ ‘श्रमिक’ ‘वृद्धाश्रम की वेदना’ उनकी संवेदना, कदम बढ़ा से हौसला बढ़ाती, बेटियाँ में बेटी की महत्ता दर्शाती, तेरा देश पुकारे, मास्क की अनिवार्यता,दोस्ती, संवाद होना चाहिए आदि विविध रचनाओं में उन्होंने देश, दुनिया, समाज के हर पहलू को छूते हुए अपनी सृजन क्षमता को परिलक्षित किया है।
आ. पँखुड़ी की रचनाएं पढ़कर ऐसा लगता है कि उनकी रचनाओं के केंद्र हमारे, आपके, समाज, राष्ट्र आदि के बी बीच महसूस हो रहे हैं।
बहुआयामी चिंतनशील रचनाधर्मिता से उन्होंने पाठकों को सम्मोहित करने और अपनी रचनाओं से जोड़़ने का भरपूर प्रयास किया है।
44 पृष्ठों के संकलन की सुंदर साज सज्जा, रचनाओं का चयन मुद्रण संपादक और संपादक मंडल के श्रम को सार्थक बनाता है।आखिरी पन्ने में अंदर परिवार की ओर से खुबसूरत बधाई पत्र और बाहरी पृष्ठ को विशेष बनाना सं. के चिंतन क्षमता को उजागर करता है।
निज कर्तव्य निभाएंगे से संपूर्ण संकलन की रचना काफी कुछ संदेश देने,बताने के लिए पर्याप्त है।
अंत में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि आ. पँखुड़ी जी का यह संकलन उनकी स्वीकार्यता में बृद्धि ही करेगा और उनकी रचनाओं से उनके पाठकों की संख्या में वृद्धि स्वाभाविक है।
आँ पँखुड़ी जी की साहित्य साधना निरंतर पुष्पित, पल्लवित होती रहे साथ ही नव साहित्य परिवार भारत की शब्दोपहार श्रृंखला गतिमान रहे,इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921