हादसे तो होते रहते हैं-नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

बलात्कार हुआ तुम्हारा, ख़ामोश हो जाओ,
ख़बरदार जो बताया, चुपचाप कमरे में जाओ।
ऐसे दर्द तो हर रोज़ सहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।

पति पसन्द का नहीं है, मूँद कर आँखें परमेश्वर बनाओ।
शादी कोइ खेल नहीं, चुपचाप इसे उम्र भर निभाओ।
ऐसे ज़ख्म से गुज़रते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।

विधवा हो तुम, ग़ैर मर्द की तरफ़ न निगाह करो।
सफ़ेद साड़ी नहीं, कफ़न है ये इससे ही निबाह करो।
ऐसे आईने टूटते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।

बाँझ हो, चुपचाप कोने में बैठ जाओ,
ज़रूरत नहीं तुम्हारी जो रस्म निभाओ।
ऐसे सितम से गुज़रते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।

नौकरी करती हो, कोई एहसान नहीं करती हो,
पैसों पे पूरा हक़ है मेरा, चुपचाप सारे पैसे देती हो
ऐसे निशाँ उभरते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।

डॉक्टर है तुम्हारी पत्नी, बोलो गर्भ की जाँच करे,
पोता चाहिए, अगर न हुआ तो गर्भपात करे।
ऐसे काँटे चुभते रहते हैं।
ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।

बुढ़ापे की दहलीज़ पे खड़ी हो, आवाज़ कम करो,
बहुत टेंशन दे दिया हमें, मरना है तो जल्दी मरो।
ऐसे किस्से सुनते रहते हैं।
*ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।*
*ऐसे हादसे तो होते रहते हैं।*

*नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़✍️*
*मुंबई*
*©Nilofar Farooqui Tauseef ✍️*
*Fb, IG-writernilofar*

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