नव दुर्गा के 9 रूप
( प्रथमा )
*माँ शैलपुत्री*
“चैत्र माह के प्रथम दिन शैलपुत्री ने दया बरसाई है”
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ब्रह्मर्षि के वचन सुन महासती के मन मे खुशियां छाई है
प्रजापति के यज्ञ मे जाने की भोलेनाथ से इच्छा जताई है।
मान सम्मान नहीं वहां जाना सती तुम्हारा ठीक नही
भगवान शिव की ये बात सुन सती मन में अकुलाई है।
पति से विनय अनुनय करके सती अपने मायके में जाती है
देख विराट यज्ञ की भव्यता सती मन ही मन हरषाई है।
लेकिन शिव का वह यज्ञ भाग नहीं देखा गणेश माता रुष्ट हुई
वो हवन कुंड में कूद कर महासती ने पति की प्रतिष्ठा बढ़ाई है।
कालांतर में माता ने पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लिया
शैलपुत्री के आने से पर्वतराज ने अपार खुशियां मनाई है।
शैलपुत्री की पूजा करने से संसार सुखी हो जाता है
मनोकामना पूरी करके जग ने शैलपुत्री की महिमा गाई है।
मां दुर्गा का प्रथम स्वरूप भक्तों को अति भाता है
चैत्र महीने के प्रथम दिन शैलपुत्री ने दया बरसाई है।
नव दुर्गा के 9 रूप
( द्वितीया )
*माँ ब्रह्मचारिणी*
पर्वतराज हिमालय के महलों में मौसम बहुत सुहाना था
ब्रह्मर्षि नारद जी को शैलपुत्री के दर्शन पाने आना था।
ब्रह्मर्षि महलों में आए शैलपुत्री ने चरणों में शीश झुकाया था
शैलपुत्री के अंतर मन में क्या है ब्रह्मर्षि ने फिर जाना था।
शिव को पाना आसान नहीं ब्रह्मर्षि ने पुत्री को समझाया था
ब्रह्मचारिणी ने जो संकल्प लिया था हर हाल में उसको निभाना था
शिव ही भक्ति शिव ही पूजा महाकाल ही मेरे पति परमेश्वर होंगे
दृढ़ संकल्प देखकर नारद जी ने शैलपुत्री को वरदान देना था।
नारद जी का वरदान पाकर शैलपुत्री ने महलों का त्याग किया
घोर तपस्या में लीन हुई ब्रह्मचारिणी नाम तीनों लोकों ने जाना था।
पति भक्ति क्या होती है ब्रह्मचारिणी ने तीनों लोकों को बताई थी
ब्रह्मचारिणी की तपस्या को महाकाल ने भी दिल से माना था।
सौ वर्ष तक अन्न त्याग कर शिव भक्ति में अपना ध्यान लगाया था
आ गई शुभ घड़ी शिव ने ब्रह्मचारिणी को अपना बनाना था।
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करके यहां स्त्री जाति भी धन्य हुई
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा का उद्देश्य जग कल्याण करना था।
नव दुर्गा के 9 रूप
(तृतीया )
*माँ चंद्रघंटा*
“महिषासुर का मान मर्दन कर माता तब महिषासुर मर्दिनी बनी”
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महिषासुर के ये अत्याचारी दैत्यों ने तीनों लोकों मे कहर ढाया है
देव दैत्यों के महासंग्राम में महिषासुर ने इंद्रासन पाया है।
महिषासुर के आतंक से जब तीनों लोक भयभीत हुए
देवता के राजा इंद्र ने ब्रह्मा विष्णु महेश का द्वार खटखटाया है।
देवों की यह करुण पुकार सुन त्रिदेवो ने महाशक्ति का आव्हान किया
तीनों देवो की महाशक्ति ने माँ चंद्रघंटा का ज्वालास्वरूप बनाया है।
माता के इस प्रचंड स्वरूप को त्रिदेवो ने अपने-अपने शस्त्र दिए
माता का यह प्रलयंकारी रूप देखकर महिषासुर भी घबराया है।
देव- दैत्यों के महासंग्राम की विभीषिका तीनों लोकों मे छाई है
तब माता चंद्रघंटा ने महिषासुर को मृत्यु का त्रिशूल दिखाया है।
महिषासुर का मान मर्दन कर तब माता महिषासुर मर्दिनी बनी
माँ चंद्रघंटा का यश तीनों लोको को देव ऋषि ने सुनाया है।
माँ चंद्रघंटा की पूजा करने से ही आसुरी शक्तियों का नाश हो जाता है।
माँ चंद्रघंटा के स्वरूप को तीनों लोको ने शीश झुकाया है
नव दुर्गा के 9 रूप
( चतुर्थी )
*माँ कुष्मांडा*
“चौथे स्वरूप का गुणगान अपनी बुद्धि से पवार ने भी गाया है”
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आदि शक्ति माँ कुष्मांडा ने यह विराट ब्रह्मांड बनाया है
ब्रह्मा विष्णु और महेश बनाकर यह सारा ब्रह्मांड बसाया है।
सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती, बनाकर माँ ने सृष्टि का निर्माण किया
त्रिदेव और त्रिदेवियों ने मिलकर ये सारी सृष्टि को चलाया है।
आदिशक्ति की प्रेरणा से ही तीनों लोकों का निर्माण हुआ
कुष्मांडा की शक्ति से ही यह जीव इस धरती पर आया है।
सूर्य लोक के प्रदीप्त वैकुंठ को माँ का निवास माना जाता है
इस वैकुंठ में रहकर ही माँ ने तीनों लोकों में प्रकाश फैलाया है।
इस विराट सृष्टि की अधिष्ठात्री देवी माँ कुष्मांडा ही कहलाती है
जलचर, थलचर, नभचर तीनों प्रजातियों का माँ ने भाग्य जगाया है।
तीनों देवी और देवों की प्रेरणा स्रोत माँ कुष्मांडा ही मानी जाती है
इस सृष्टि में जीवात्मा को ही देखकर माँ कुष्मांडा का मन हर्षाया है।
माँ कुष्मांडा की पूजा करने से रोग, दोष, शोक नष्ट हो जाते है
चौथे स्वरूप का गुणगान अपनी बुद्धि से पवार ने भी गाया है।
नव दुर्गा के 9 रूप
( पंचमी )
*माँ स्कंदमाता*
“भगवान स्कंद की माता होने का गौरव इसी रूप ने पाया है”
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स्कंदमाता माँ दुर्गा का ये पावन पांचवा अवतार है।
जिसने इस स्वरूप की पूजा की उसका बेड़ा पार है।
शिव शक्ति के पुनर्मिलन से जिस ज्योति पुंज का जन्म हुआ
इस ज्योतिपुंज को ही छह माताओं का मिला प्यार है।
ज्योति पुंज ने समय आने पर अपना रूप दिखाया है।
स्कंदमाता की गोद मे ही कार्तिकेय को मिला दुलार है।
कुमार स्कंद की माता स्कंद माता नाम से जानी जाती है।
स्कंद कुमार कार्तिकेय ही बने देवों की सेना के सूत्रधार है।
तारकासुर का वध करने के लिए जिसने अवतार लिया
तारकासुर को मारकर तीनों लोको का उतारा भार है।
स्कंदमाता की पूजा करने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है
कार्तिकेय की माता का इस जग पर बड़ा उपकार है।
भगवान स्कंद की माता होने का गौरव इसी रूप ने पाया है।
तारकासुर को मरवा कर तीनों लोकों का किया उद्धार है।
( छटवी)
*माँ कात्यायनी*
“माँ कात्यायनी की अनुकंपा से स्वर्ग का द्वार खुल जाता है”
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कात्य गोत्र में जन्मी है इसीलिए माँ को कात्यायनी के नाम से जाना जाता है
इनकी पूजा करने से अर्थ धर्म काम मोक्ष भक्तों को सहज ही मिल जाता है।
महर्षि कात्यायन ने पुत्री प्राप्ति के लिए मां परम्बा से वरदान पाया है
कात्यायन के घर जन्मी है कात्यायन को श्रेष्ठ पिता माना जाता है।
चमकीले देह के कारण मा ने तीनों लोकों मे अपना प्रकाश फैलाया है
शेर सवारी वाली कात्यायनी माता पर भक्तों का विश्वास बढ़ जाता है।
द्वापर में कृष्ण को पाने के लिए गोपियों ने कात्यायनी मां को मनाया था
जब कृष्ण मिले हर गोपी से गोपियों को माँ का ये चमत्कार दिखाई देता है है
तब से मां कात्यायनी ब्रज की अधिष्ठात्री देवी कहलाई जाती है
आज भी ब्रज में माँ कात्यायनी का भव्य दरबार सजाया जाता है।
नवरात्रि के छठवें दिन भक्त कात्यायनी माता की दिल से पूजा करते हैं
मनोकामनाए पूरी हो जाती सभी भक्तों का भाग्य उदय हो जाता है।
जीवन में मुक्ति पाना है तो माँ कात्यायनी का ध्यान हमें करना होगा
माँ कात्यायनी की अनूकंपा से स्वर्ग का द्वार खुल जाता है।
( सप्तमी )
*माँ कालरात्रि*
“माँ का क्रोध कम करने के लिए स्वयं महाकाल भी रणभूमि में आते है”
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घोर तपस्या करके ये शुंभ निशुंभ दानव ब्रह्माजी से वरदान पाते है।
इसी वरदान के बल पर तीनों ही लोको में भारी उत्पात मचाते है
दुराचार की अति हो जाती तो उसका ये अंत भी निश्चित है
इनका भी अंत करवाने के लिए देवता माँ दुर्गा के पास जाते हैं।
कालरात्रि का रूप धारण करके माँ चंड मुंड और शुंभ का नाश कर देती है
निशुंभ की आज्ञा से रक्तबीज के साथ ही सारे दानव रणभूमि में आते हैं
रक्तबीज वरदानी था खून की बूंद गिरी तो फिर रक्तबीज बन जाता था
माँ कालरात्रि के द्वारा रक्त पीने से सारे ही रक्तबीज भी मारे जाते है।
माँ कालरात्रि के दिव्य त्रिशूल से निशुंभ भी रन में मारा जाता है।
माँ कालरात्रि के लिए देवता भी आकाश से माता पर फूल बरसाते है।
इतने पर भी माँ कालरात्रि का प्रलयंकारी क्रोध शांत नहीं हुआ
माँ का क्रोध कम करने के लिए महाकाल रणभूमि में आते है
कैलाशपति के सीने से जब कालरात्रि के चरण छूते है
माँ कालरात्रि का क्रोध शांत हो जाता है देवगन भी मुस्कुराते है
माँ कालरात्रि का ध्यान करने से भय का विनाश हो जाता है
माँ कालरात्रि से आशीष पाकर भक्त भी निर्भय हो जाते है।
( अष्टमी )
*माँ महागौरी*
“पत्नी का क्या कर्तव्य होता है मां ने नारी जगत को सिखाया है”
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कठिन तपस्या करके ही शैलपुत्री मां ने आखिर शिव को पाया है
तप से पड़े श्याम वर्ण शरीर को शिव ने गंगा जल से धोया है
गौर वर्ण शरीर हुआ तब देवताओं ने इसे महागौरी का नाम दिया
मां की कठिन तपस्या देखकर देवताओं ने भी शीश झुकाया है।
मां जब तप मे लीन थी तब एक भूखा शेर वहां पर आया था
शेर सवारी करके मां ने इस भूखे शेर की भूख को मिटाया है।
वहीं सिंह सवारी बनकर मां महागौरी को कैलाश पर्वत पर लाया था
शिव के साथ कैलाश पर्वत पर महागौरी मां ने अपना घर बसाया है।
कार्तिकेय और प्रथम पूज्य श्री गणेश मां की संतान कहलाती है।
पत्नी का क्या कर्तव्य होता है मां ने नारी जगत को सिखाया है।
मां महागौरी की पूजा नवरात्रि में आठवें दिन की जाती है
सुख शांति घर में आ जाती मां ने अपने भक्तों का भाग्य जगाया है।
जो भक्त सच्चे मन से इस आठवे दिन मां गौरी की पूजा करते है
इन भक्तों ने भी मां महागौरी से मनचाहा वरदान पाया है।
( नवमी )
*माँ सिद्धिदात्री*
अर्धनारीश्वर शिव के जैसा मां सिद्धिदात्री का भक्त हमें बनना होगा
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सभी सिद्धियां पाना है तो मां सिद्धिदात्री का ध्यान हमें करना होगा
अज्ञान कि इस खाली गागर को ज्ञान के मोतियों से हमें भरना होगा।
नवरात्रि में नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा होती है
नौवें दिन मां की असीम कृपा पाने का हमें पूर्ण प्रयत्न करना होगा।
देवाधिदेव महादेव ने भी मां से ही सभी सिद्धियां पाई है
इसीलिए सभी भक्तों को मां सिद्धिदात्री का आव्हान करना होगा।
मां सिद्धिदात्री की अनुकंपा से शिव का आधा शरीर देवी का हो जाता है
अर्धनारीश्वर शिव के जैसा मां सिद्धिदात्री का भक्त हमें बनना होगा।
मां सिद्धिदात्री की अनुकंपा से भक्तों की सभी तृष्णाएं मर जाती है
मां का ध्यान लगा कर मृत्युलोक का ये भवसागर हमको तरना होगा।
मां सिद्धिदात्री तीनों लोकों के भक्तों को सभी सिद्धियां देती करती है
हमारे अंदर जितने कलुषित कर्म है मां की कृपा से इन्हें हमें हरना होगा।
स्वयं सिद्ध भगवान अर्धनारीश्वर माता सिद्धिदात्री के प्रबल भक्त हुए।
नवमी को मां की पूजा कर सिद्धिदात्री का पावन भक्त हमे बनना होगा।
नव दुर्गा के 9 रूप
सीताराम पवार
उ मा वि धवली
जिला बड़वानी
मध्य प्रदेश
9630603339