गजल
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मंदिर में रोज माथ नवाने लगा हूॅं मै।
कि तेरे लिए मन्नतें माॅंगने लगा हूॅं मै।।
तू खुश रहे बस यही चाहत है मेरी।
छुप-छुप तेरी तस्वीरें निहारने लगा हूॅं मै।।
अक्सर दोस्तों से जिक्र करता रहता तेरा।
तेरी तारीफों के कसीदे काढ़ने लगा हूॅं मै।।
तू होगी तो कितनी खुशगवार होगी जिंदगी।
तन्हाइयों में यह सोच मुस्कराने लगा हूॅं मै।।
तेरा नाम लेकर सब छेड़ते हैं मुझको।
नाम तेरा आते ही शरमाने लगा हूॅं मैं।।
बात बढ़ी तो माॅं तक भी पहुंच गयी।।
मां पूछी तो हांमी में सिर हिलाने लगा हूॅं मै।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
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(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)