सीताराम पवार: *वक्त ने भी किनारा कर लिया है*
यू बहकना अच्छा नहीं तेरे इस पागल दीवाने का
आओ तुम भी देखो तमाशा इस नामुराद मयखाने का |
बेहोशी में भी जिक्र कर रहा है यह खाली पैमाने का|
अब तो इसे उस दीवार के पीछे लेजाकर सुला दे साखी
यूं बहकना अच्छा नहीं तेरे इस पागल दीवाने का |
दिल से पहुंची तो है ये आंखों में इसकी हिकारत की बूंदे
बस एक ही रट लगाए बैठा है मय पीने और पिलाने का |
अब तो नशा तारी हैं जेहन पर इसके तेरे ही नाम का
क्या बिगाड़ा है इसने तेरे और तेरे इस जमाने का |
तूने कभी देखा है साखी को अपना यह रंग बदलते हुए
जिंदगी अब तो नाम है इसकी मर मर के जिए जाने का |
अब तो यह नामुराद लत छूटने का नाम नहीं लेगी
रास्ता चुन लिया है इसने अब कब्रस्तान जाने का |
यह समझदार हो गया है इतना समझने से नहीं समझता
वक्त ने भी किनारा कर लिया है इसे और समझाने का |
*दर्द की दवा बना ली मैंने*
किसी ने वाह-वाह की किसी ने अपना ही मुंह फेर लिया
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तुमने जो दर्द दिया उस दर्द से अपनी ये गजल बना ली मैंने |
दर्द भरी गजल लिखकर इस जमाने को सुना दी मैंने|
किसी ने वाह-वाह की किसी ने अपना ये मुंह फेर लिया
ऐसी मशहूर हुई गजल मेरी सोई किस्मत जगा ली मैंने |
तुम्हारे दिए दर्द ने तो दुनिया में नाम कर दिया मेरा |
दर्द भरी गजल को गाकर शोहरत अपनी जमा ली मैंने |
कई शायरों ने अपने इस दर्द को अपनी शायरी में पिरोया है
लेकिन इसी गजल से शायरों पर धाक जमा ली मैंने |
जो दर्द दिया था तुमने अब उसी दर्द की दवा बनाई है यारों |
इस दर्द की दवा देकर कई रोशन दुआ कमा ली मैंने |
रोशन दुआओं के असर से हमारे यह दर्द फना हो जाते है
इन्हीं दुआओं के कारण तकदीर के द्वार खुलवा लिए मैंने |
तुम्हारे दिए दर्द से ही मैंने भी यहां दौलत और शोहरत पाई है
इसी दर्द की चिंगारी से नफरतों को आग लगा दी मैंने |
*पत्थर के फूल*
आंसुओं के इस सैलाब में ये पत्थर दिल पिघलने लगते है
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तकदीर साथ दे तो इंसान के दिमाग और दिल बदलने लगते है |
अच्छे विचार आने से ये पत्थर भी हमको फूल लगने लगते है |
बुरे विचारों के कारण इंसान का दिल भी पत्थर जैसा हो जाता है |
प्रेम लबालब भरा हो जब दिल में पत्थर भी घुलने लगते है |
हमने इस बेदर्द दुनिया में इंसानों को भी बदलते देखा है
आंसुओं के इस सैलाब मे ये पत्थर दिल पिघलने लगते है |
पत्थर घर की नीव है और मंदिर में पत्थर ही तो भगवान है |
पत्थर हमारे पिता समान और माता जल का शीतल स्रोत है |
पिता की कठोर सुरक्षा के कारण परिवार संभलने लगते है |
पत्थर के फूल देखना है तो कोहिनूर और शालीमार देखने होंगे |
ऐसे अनमोल फूल पाकर इंसान के भाग्य सवरने लगते है |
कोमल फूल भी कभी कठोर पत्थरों का काम कर जाते है |
विचार बदलने से हमको पत्थर भी फूल लगने लगते है |
सबकी नजर में
*मंजिल मांग रही कुर्बानी*
मुकाम तो कई आए मगर एक मंजिल नहीं आई
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मैं हूं प्यासा राही और तू है मीठे घाट का पानी |
दो घूंट पीने दे मुझको शायद आ जाए फिर रवानी|
बड़ी दूर से आया हूं और जिंदगी की ठोकरें खाया हूं
मंजिल भी बहुत दूर है और यह राहे भी हैं अनजानी |
जिंदगी का सफर कठिन है मगर हौसला अभी है
जब तक है सांस चलता रहूं फिर आए क्यों न सुनामी |
चला तो था घर से अकेला मगर कारवां बनता गया
बरसों से चल रहे हम देखी है हमने कई निशानी |
कोई चल रहा था आगे और कोई चल रहा है पीछे
चलना ही तो जिंदगी है चाहे बीत जाए यह जवानी|
तकदीर में लिखी थी जिसके पाई उसीने यह मंजिल
अपनी मंजिल तक न पहुंचा उसकी है अधूरी कहानी |
मुकाम तो कई आए मगर एक मंजिल नहीं आई
सिर्फ चार कदम दूर है तब मंजिल मांग रही कुर्बानी |
*ईमान की दौलत कमाने मे*
पवार तू भी चुप हो जा क्या मतलब है ये सोई दुनिया को जगाने मे
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बेईमानी जिसने भी कि वो तो रोता रहा इस जमाने में
कितनी मेहनत करना पड़ती है ईमान की दौलत कमाने मे |
बेईमानी करके जिसने यहां गरीबों और लाचारों को लूटा है
फिर कितना समय लगता है ऐसे धन को लूट जाने में |
बेईमानी ही जीवन में सबसे बड़ा पाप समझा जाता है
बद्दुआ ही तो मिलती है खुद की इस उम्र घटाने मे |
दुआओं में असर है तो फिर ये बद्दुआ मे कितना होगा
अरे चार कंधे भी नसीब नहीं होते खुद की अर्थी उठाने मे |
समझाने वाले मौन हो गए कोई समझने को तैयार नहीं
पवार तू भी चुप हो जा क्या मतलब है ये सोई दुनिया को जगाने मे |
औरों को सताने वाला एक दिन खुद भी सताया जाता है
अरे क्या मिल जाएगा उसको औरों को सताने मे |
इंसान यहां कुछ भी करले ऊपरवाला तो सब देख रहा है
उसका एक ही इशारा काफी है बेईमानों की हस्ती मिटाने में
*तुम तो इस दिल से गरीब हो*
गलतफहमी हम पालते नहीं गलतफहमी हम दूर करते है
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तुम तो दूर होकर भी हमारे इस दिल के सबसे करीब हो
तुम चाहो नफरत करो मगर हमारे लिए तुम सबसे अजीज हो |
गलतफहमी हम पालते नहीं गलतफहमी हम दूर करते है
शायद आपकी उस गलतफहमी में छुपा हमारा नसीब हो |
खुशफहमी समझ कर अब गलतफहमी में जी रहे हैं लोग
तुम अपने नसीब को भी नहीं मानते यार तुम भी खूब हो |
बस दौलत के पीछे पड़ा हुआ है यहां तो सारा जमाना
मुझे क्या पता दौलत से नहीं तुम तो इस दिल से गरीब हो |
अक्सर ये लोग जमाने में अपने अरमानों का गला घोटते है
खुद के अरमानों का गला नहीं घोटा तुम खुशनसीब हो
अपनी चिंता की तुमने मगर अपनों की चिंता नहीं कर पाए
अपनों की चिंता नहीं की तुमने तुम तो सबसे बदनसीब हो |
अभी नहीं समझे तो कोई बात नहीं वक्त तुम्हें समझा देगा
आज भी गलतफहमी का शिकार हो तो यार तुम भी अजीब हो |
*कलम की धार*
झूठ बोलना छोड़ दे तू भी और सच की तरफदारी कर
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अगर करना ही है तो किसी के दर्द की तू हिस्सेदारी कर|
बेवफाई बहुत हो चुकी अब किसी से तू वफादारी कर |
मेरी ये खुशियों के तलबगार तो बहुत है यहा पर
मगर मेरे इन सारे दर्दों से तू भी तो अपनी यारी कर |
हिम्मत से तू काम ले अब तो डर के आगे जीत है
घोड़े की सवारी बहुत हुई अब तू भी शेर सवारी कर |
धर्म-कर्म कि तू बात करें यह तो मुझको भी मंजूर नहीं
घर में माता-पिता बीमार है तू उनकी भी तीमारदारी कर |
जो आया है इस जग में उसको तो एक दिन जाना है
भलाई का काम कर ले पहले फिर जाने की तैयारी कर |
झूठ बोलना संस्कृति हुई यहां पल-पल में झूठ बोलते है
झूठ बोलना छोड़ दे तू भी और सच की तरफदारी कर|
लिखने वालों की भीड़ हुई उसकी चिंता क्यों करता है
सच्चाई तुझको लिखना है अपनी कलम की धार करारी कर |
कविता -आओ बनायें एक ऐसा हिन्दुस्तान
सीताराम पवार
उ मा वि धवली
जिला बड़वानी
मध्य प्रदेश
9630603339