आओ बरखा रानी।।
दे दो हमको पानी ।।
सूख रही है धान की खेती बिरवे हैं मुरझाए ।
खड़े हैं नन्हें-नन्हें छौने, प्यास से हैं मुँह बाये
सिंचित कर दो धरा की चूनर,
श्वेत रंग हो धानी।।
आओ बरखा रानी।।
हाथ में ले कागद की नैया नव निहारती राधा।
सक्षम हो तुम चाहो पल में, दूर हो सारी बाधा ।
फिर से जग जाएगा अपनी,
बचपन भरी कहानी ।।
आओ बरखा रानी।।
जूही और चमेली के तो निकल गए हैं प्राण ।
बेचारा गुलाब रोता है कैसे हो कल्याण।
जीवनदायिनी सुधा बरस दो करो नहीं मनमानी ।।
आओ बरखा रानी।।
करुणा भाव हृदय में लाओ ,
मत तरसाओ जीव।
सुख देकर इस पिपासु जग को ,
मिलेगा हर्ष अतीव।
“सुख दीने सुख होत है” कबिरा ने था कहा यह बानी।।
आओ बरखा रानी।।
क्लिक कर पढ़े एविचार और भाव का संगम स्थल है-साहित्य
अपनी विनय यही है तुमसे, तृप्त करो मन काया ।
तप्त धारा की पीड़ा समझो,
दे दो अपनी छाया ।
युग युग से सुनता आया हूं, तेरी स्नेह कहानी ।।
आओ बरखा रानी।।
———
डॉ ब्रजेन्द्र नारायण द्विवेदी शैलेश वाराणसी
🌹🌷🌻🌳🌴👏👏👏