आराधना गुँजायमान् त्रिभुवन में
Kawita/Shayari
_मिथ्यावादी का अंत अतिपीड़ादायक, बहुत बुरा है।_
_धन दौलत यश ख्याति, पर जीवन दुखों से भरा है।_
_छल प्रपंचों से झूठे लोगों का मन, हरओर धिरा है।_
_सत्यार्थि सुसंस्कारवान्, सहज परमपद सदा पाते।_
_जागतिक् लाँछनाओं से, किंचित वे नहीं धबड़ाते।_
_एक झूठ अपना सौ झूठ बोल भी, छुपा नहीं पाते।_
_दण्डित न हों परन्तु, अपने को अपराधी वे हैं पाते।_
_मिथ्यावादी की अधर्मियों से मिलिभगत, प्रगाढ़ नाते।_
_मान्यता श्रद्धा मिथ्यात्व वा, मिथ्यादर्शन में हैं आते।_
_मिथ्यात्त्व के भेद, अगृहीत व गृहीत ग्रंथों में कहे जाते।_
_अनुपदित मिथ्याकृत जीव, विपरीत श्रद्धान भौतिकवादी होते।_
_उपदेश गह राग देव देवी आराधना कर, गृहीत मिथ्यात्व अपनाते।_
_एकान्त, विपरीत, विनय, संशय और अज्ञान पंचगृहीत कहलाते।_
_दर्शन शास्त्र गूढ़, मिथ्या त्यज हम, आनंद सुपथ पर हीं जाते।_
_मयपन का दंभपूर्ण खेल, जागतिक मिथ्यापू्र्ण है यह सारा।_
_अनैतिक शोषण, प्रतारण कर भरता नर पापों का पिटारा।_
_अंतरतर का माने वहीं सत्यगामि हो_ भवसागर तर जाता।_
_झूठा बोले वो, सांसारिक महाजाल में फंस, अश्रु बहाता।_
_आराधना कर भक्तगण, सत्य पथ अनवरत चल पाते।।_
भक्ति गजल राम तेरी नैया
_डॉ. कवि कुमार निर्मल_✍️_
_बेतिया, बिहार_