दशहरा पर अरविंद अकेला की कविता

कविता

अपने दिल में छिपे रावण को मारो

दुराचारी रावण को जलाते हैं सभी ,
दशहरा में हर बार,
पर नहीं जलाते हैं कभी,
अपने अंदर का अहंकार।
दुराचारी रावण को जलाते हैं…।

जलाते हैं सभी मेधनाथ को,
पर नहीं जलाते हैं उसके दुर्विचार,
जलाते सभी कुम्भकर्ण को यहाँ,
पर नहीं जलाते अपने दुर्व्यवहार।
दुराचारी रावण को जलाते हैं…।

मारो अपने अंदर के बैर-भाव को,
जलाओ धृणा,द्वेष हर बार,
दिल में छिपे नफरत को मारो,
करो अपने दुर्गुणों का संहार।
दुराचारी रावण को जलाते हैं…।

गर कर सको तो सभी कर लो,
अपने दुर्गुणों का तिरस्कार,
किसी को तुम अबला नहीं समझो,
नहीं करो तुम उसका,बलात्कार।
दुराचारी रावण को जलाते हैं…।

नहीं करो किसी का अपहरण,
नहीं करो कभी लूट व मार,
नहीं करो अपमान किसी का,
करो सदैव सभी जन से प्यार।
दुराचारी रावण को जलाते हैं…।

अपने दिल में छिपे रावण को मारो,
मारो अपने अंदर का बैर,अहंकार,
तन-मन को पवित्र,निर्मल बना लो,
रखो सभीजन से प्रेम-सरोकार।
दुराचारी रावण को जलाते हैं …।
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अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27

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