अरुण दिव्यांश की पांच रचनाएं पढिए

१ निगाहें
निगाहें हों निज कदमों पर ,
कदम डगमगा नहीं सकते ।
बिन कदमों पे निगाहें डाले ,
घर भी जगमगा नहीं सकते ।।
निगाहें होंगी जब कदमों पे ,
शीश स्वयं में ही नत होगा ।
जागेगा मृदुल भाव मन में ,
निष्ठा प्यार का भी मत होगा ।।
शीश स्वयं में तो नत रहेगा ,
शीश ऊँचा रहेगा समाज में ।
समाज से वही स्नेह मिलेगा ,
सम्मान भी मिलेगा ब्याज में ।।
मानवता से संस्कार खिलता ,
संस्कार से शिक्षा जगता है ।
शिक्षा को तब अग्रसर होता ,
विकास की ओर भगता है ।।
धन से घर जगमगाता नहीं ,
जगमगाता तो है संस्कार से ।
पैसे से संस्कार जगता नहीं ,
संस्कार जगे उच्च विचार से ।।
__________________
२ जलधर को घिरते देखा

मैंने जलधर को घिरते देखा ,
जलधर को ही घेरते देखा ।
जलधर नभ से परिणत हो ,
धरा जलधर मिलते देखा ।।
जलधर बना जल की बूँदें ,
बरसा नग वृक्ष लताओं पर ।
जलधर जब धरा पे उतरा ,
मिला जलधर खताओं पर ।।
जलधर वाष्प दे जलधर को ,
जलधर जलधर को दे जल ।
एक जलधर नभ में होता ,
दूजा जलधर होता है थल ।।
नभ में जलधर हवा में उड़े ,
दिखने में लगे बहुत थोड़ ।
थल पे जलधर विस्तृत होता ,
दिखता कहीं ओर न छोर ।।
जलधर जलधर एक होता ,
जलधर हाल जलधर जाने ।
जलधर है प्रकृति संसाधन ,
विफल होते विज्ञान पैमाने ।।
________________
३ बालगीत
शीर्षकः भारत सृजनहार
हम भारतीय बाल होनहार हैं ,
हम भारत के ही सृजनहार हैं ।
भारत हेतु हर तन मन अर्पित ,
हम भारतीय बाल त्यौहार हैं ।।
हम बच्चे होते हैं मन के सच्चे ,
हम बच्चे भारतीय संस्कार हैं ।
विनीत विनम्र है स्वभाव हमारा ,
हम बाल भारत के आचार हैं ।।
भारत वतन हम सब भारतीय ,
विनीत विनम्र हमारा व्यवहार है ।
भारत में जन्म सौभाग्य हमारा ,
हम बाल भारतीय आकार हैं ।।
हम भारतीय सारे ही नन्हे मुन्ने ,
हम ही भारतीय स्वप्न साकार हैं ।
हम भोले बच्चे ही मन के सच्चे ,
हमारा मन ही दुनिया संसार है ।।
___________________
४ उम्मीद , भरोसा , यकीन
विधाः पद्य
शीर्षकः आस्था
जीवन में प्रथम निहित आस्था ,
आस्था लिए होता है विश्वास ।
विश्वास से ही उम्मीदें हैं जगती ,
फिर पूरण हो पाती यह आस ।।
आस पर ही यह जीवन टिका ,
इस बिना यह जीवन निराश ।
हाथ लगती जब यह निराशा ,
तब जीवन ही होता है उदास ।।
जीने हेतु विश्वास को जगाओ ,
विश्वास होता आश पे निर्भर ।
जीवन तो एक बहती दरिया ,
बनकर बहता रहता है निर्झर ।।
एक कहावत कहती है दूनिया ,
जबतक साँस तबतक आस ।
आस खत्म होती है दुनिया से ,
जब तन हो जाता है निःश्वाँस ।।
भरोसे पर ही टिकी है दुनिया ,
एक दूजे को देख होता यकीन ।
एक निपटाते दूजा काम करते ,
जैसे जल में स्थिर न होए मीन ।।
मीन दीन सब रहते हैं जीवित ,
जीवन पे होता उनका विश्वास ।
जीवन जियो विश्वास ही करके ,
विश्वास ही हो जीवन का पाश ।।
__________________
५ विश्व शांति
शीर्षकः दिल में हलचल
अन्दर मचा है दिल में हलचल ,
बाहर शांति मिले तब कहाँ से ।
ढूँढ़ रहे हम हैं विश्व में ही शांति ,
शांति पलायन है अपने यहाँ से ।।
शांति ढूँढ़ते ज्ञानी संत तपस्वी ,
हर लोकों में भी व्याप्त किया है ।
जिसने बनाया निज मन शांति ,
देवों को भी वह प्राप्त किया है ।।
शांति ढूँढ़ते बाहर ही सब जन ,
अन्दर ही मचा है दिल में क्रान्ति ।
मिले न शांति लोकों में कहीं भी ,
दिल से हटे न जबतक भ्रान्ति ।।
शांति भंग का कारण अहंकार है ,
जिससे निकलते बहुत हैं विकार ।
अहंकार त्याग होगा जिस दिन ,
शांति का होगा स्वतः चमत्कार ।।
शांति चाहिए हमें यदि विश्व में ,
अहंकार करना होगा परित्याग ।
नष्ट भी होंगे मन के विकार सारे ,
शांति मन स्वतः जाएगा जाग ।।
एक अहंकार के अनेक विकार हैं ,
लोभ क्रोध ईर्ष्या मिथ्या व द्वेष ।
एक अहंकार मिटेगा जिस दिन ,
उस दिन बचे नहीं कुछ भी शेष ।।
तब मिले इस आत्मा को शांति ,
मन भी उज्ज्वल तब होंगे अपार ।
फिर धरा पर फैल जाए ये शांति ,
शांति छाएगी तब विश्व संसार ।।

पूर्णतः मौलिक
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार
मो 91 9504503560

Leave a Comment