*बरसाती मेंढक*
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कहां छुपे रहते हैं साल भर,
ढुंढने पर भी नहीं मिलेंगे।
ये बरसाती मेंढक बरसात में,
ना जाने कहां से खिलेंगे।
टर्र टर्र की आवाज सुनाकर,
संगीत में बातें करते हैं।
ऐ बरखा तुम जोर से बरसो,
हम तुम्हारा स्वागत करते हैं।
उछल कूद कर शोर मचाएं,
इधर उधर भागते जाए।
डर लगता है हमे चलने में,
कहीं पैरों से कुचले नहीं जाए।
कुछ लोगों की ऐसी ही आदत,
बरसाती मेंढक बन जाए।
कोई इंसान अगर हो तकलीफ में,
सामने मिले तो मुंह फेर जाए।
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अगर आ जाए धन दौलत तो वो ही,
उसके आगे पीछे चक्कर लगाएं।
जी हुजूरी में सच या झूठ में,
मुथा उसके साथ ही टर्र टर्र गाएं।
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*स्व रचित-छगनलाल मुथा-सान्डेराव*
*मुंबई (महाराष्ट्र)*