जिसपर किरपा करते भोले
तन पर अपने भष्म लगाए,
पहने है मृगछाल
जिसपर किरपा करते भोले,
होते मालामाल
जिनपर किरपा——–
गले मे जिनके सर्प की माला,
चन्द्र सोहत है भाल
शत्रु जिनसे थर-थर काँपे,
समझ न पाते चाल
कामदेव सा भष्म हो जाता,
जिस पर आता काल
मिट जाता है धरा से होता,
भस्मासुर सा हाल
जिसपर किरपा करते भोले,
होता मालामाल
जिसपर———
गुरू वही है, प्रभू वही है,
वही है तारणहार
पड़ी भँवर में जीवन नईया,
वही लगाते पार
ध्यान लगाता जो भी उनका,
होता वो खुशहाल
वही है भाग्यविधाता जग के,
वही है महाकाल
जिसपर किरपा——–
श्रीराम श्रीश्याम भजन
गीतकार–प्रेमशंकर प्रेमी (रियासत पवई)औरंगाबाद