नव वर्ष
आओ नव-वर्ष की नूतन बेला है, सतत् ज्योति जीवन की जगाये रहें
भूलें जो बीता सीखें उससे, स्वप्नों को साकार करें सहर्ष भव्य सजाये रहें
आधुनिकता के उत्थानों में, अपने जीवन का उत्थान न भूलें
भौतिक विकास की गरिमा में, अपनी संस्कृति का सम्मान न भूलें
आओ खंडहरों पर रोयें मत, इससे ही नये भवन बनाने की बारी आती है
विभीषिका से घिरा राष्ट्र है, उसे मुक्ति दिलायें मानवता अकुलाती है
हम मनुज श्रेष्ठ बन मानवता का श्रंगार करें, सृजन करें सहर्ष
निर्धनता,भूख,आतंक, हिंसा, विस्तार वाद का दूर करें अपकर्ष
यों तो बीत रहे वर्ष ने देश- दुनियाॅ॑ की कर ध्वस्त अर्थव्यवस्था,दिये दंश अपार
भारत का सराहा गया आचार विचार,पर करोना बदल रहा नित नए आकार
आओ नये वर्ष में नयी पहल कर, कठिन जिंदगी सरल बनायें
समय हमारे साथ चलेगा,हम काल को भी अपना दास बनायें
नव चेतना नव जागरण लाये, उमंग की तरंग से मन विभोर हो जाये
व्याधियों से मानव को मुक्ति मिले, सब निरोग हों करोना जग से जाये
प्रकृति सृष्टि सुधा रस बरसाये, हर हृदय अभिनव सुमन खिल जाये
जीवन कंटक से मुक्ति पाये,मन में बादल खुशियों का छा जाये
प्रेम सुखद अनुराग छाये, अविरल अभिराम नित नव वर्ष आये
यह घुटन घुटन सा वक्त जाये, प्रति क्षण नव नूतन हर्ष लाये
आओ नव-वर्ष की नूतन बेला है, सतत् ज्योति जीवन की जगाये रहें
भूलें जो बीता सीखें उससे, स्वप्नों को साकार करें सहर्ष भव्य सजाये रहें
नव वर्ष मंगलमय हो
भारत की जय हो
चंद्रप्रकाश गुप्त “चंद्र”
(ओज कवि)
अहमदाबाद, गुजरात