// ग़ज़ल //
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धुन- तुम तो ठहरे परदेशी,साथ क्या निभाओगे,……।
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ज्ञान रूपी गहनों से,बच्चों को सजाना है ।
ज्ञान दीप से ज़ीवन,इनका जगमगाना है ।।
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बगियां-ए-इन्सां सुमन, की बहार हैं बच्चे ।
ज्ञान रूपी खुशबू से, बगियां महकाना है ।।
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भोले हैं निष्कपट हैं, निष्पाप हैं बच्चे ।
निर्मलता बच्चों की, ज्ञान से बचाना है ।।
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परिवेश में बच्चे, सब ही सीख जाते हैं ।
प्रदूषण मुक्त परिवेश ,सभी को बनाना है ।।
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बच्चे भविष्य सृष्टि के,जग के निर्माता हैं ।
बच्चों को पढ़ा करके,सृष्टि को बचाना है ।।
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रचनाकार–लखन कछवाहा ‘स्नेही’
