*🌷⚘🥀🌹ग़ज़ल🌹🥀⚘🌷*
बोझ हिस्से में मिरे सर पर उठाना रह गया
मैं रहा पीछे मगर आगे ज़माना रह गया
थे बुलंदी पर सितारे तो ज़माना साथ था
मुफलिसी आई तो बस नजरें चुराना रह गया
अब बुजुर्गों की दुआएँ कौन लेता है यहाँ
सब गए शादी में घर बूढ़ा पुराना रह गया
दिल में उसके आरज़ू थी यार का दीदार हो
उम्र पूरी हो गई सपना सुहाना रह गया
हो रही ‘बीना’ परेशाँ रात-दिन यह सोचकर
रहने वाला चल दिया उसका ठिकाना रह गया
*डा बीना सिंह “रागी”
स्वतंत्र लेखिका कवयत्री