नव वर्ष काव्य प्रतियोगिता हेतु
कवयित्री- गरिमा विनित भाटिया
शीर्षक- फ़िर एक दिसम्बर गुजर रहा है
नया साल पुराना होने कि चाह में
तलाशे तराशे कुछ कुछ राह में
बढ़ बढ़ तारीखे बदल रहा है
फ़िर एक दिसम्बर गुजर रहा है
कहिं झलके झलक हँसी लिये
कहिं छ्लके छलक आँसू पिये
साल आखिरी देहलीजो से उतर रहा है
फ़िर एक दिसम्बर गुजर रहा है….
सोचे कभी वक्त थम जाए ,
कभी लगे अगला लम्हा कब आए?
सोच सोच का मन्जर लिये ,
फ़िर एक दिसम्बर गुजर रहा है।
समय की चादर में कुछ ,,,
टिक टिक सुइयों का वजन लिये
तिनका तिनका बिखर बिखर
फ़िर एक दिसम्बर गुजर रहा है
गरिमा विनित भाटिया
अमरावती, महाराष्ट्र
garimaverma550@gmail.com
Bahut khoob chacha
Very very nice