“अपना घर”
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अपना घर ही स्वर्ग है अपना ।
स्वर्ग का देखें न दूजा सपना ।।
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स्वर्ग आवास है धर्म धारी का ।
धर्म कर देखें स्वर्ग का सपना ।।
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स्वर्ग अपना ही घर बना लीजे ।
बदल परिवेश घरों का अपना ।।
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बैर नफरत से परे घर में कभी ।
नर्क का आता ही नहीं सपना ।।
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घर को ‘स्नेही’ बनाओ पावन ।
घर में रह कर,हरि को जपना ।।
*******इति*******
रचनाकार –लखन कछवाहा’स्नेही’
20112021