गुलाब नहीं तुम नया ख्वाब ले आना
*गुलाब नहीं तुम नया ख्वाब ले आना ,कितनों के आंसू सूख गए आंखों में ,आते-आते तुम उनका हिसाब ले आना,जो बोल ना सके दिल की बातें ,होठों पर उनकी वो बात ले आना..*
*एक नई किरण, एक नई उम्मीद, एक नया आश ले आना*
*जो बिछड़ चुके हैं अपनों से, हो सके तो उनको दिल के बहुत पास ले आना*
*जब भी आना अपनी एक नई पहचान ले आना ,*
*नम पड़े आंखों के लिए नया आसमान ले आना ,* *और जो सिमट चुके हैं खुद में राष्ट्रभक्ति में उनके लिए जान ले आना*
*जो खरीद ना सके पल भर की खुशियां ,*
*तुम उनके लिए पूरी दुकान ले आना* *और जो टूट चुके हैं टुकड़ों में, उनके लिए नई स्वाभिमान ले आना*
*जो करते हैं बातें बेगैरत की तुम उनके लिए जवाब ले आना, जो सोए नहीं है बरसों से ,तुम उनके लिए सुनहरा ख्वाब ले आना*
*जब भी आना खुशियों की सौगात ले आना, भूले बिसरे जज्बात ले आना*
*उम्मीदें टूट चुके हैं कितनों की ,तुम उम्मीदों की बारात ले आना*
*बैठ करते थे जब दोस्तों के संग, आते आते उनकी भी याद ले आना*
*और जो छुप -छुप कर देखा करती थी तीसरी ब्रेच से ,हो सके तो उनकी आखिरी मुलाकात ले आना*
*आकर मिलना गले से, और हो सके तो वो आखरी घूंट वाली पानी की गिलास ले आना,*
*और बेटी को विदा करके जो रोती थी मां रात भर*
*हो सके तो उनकी आंखों की उम्मीद वो आस ले आना*
*सूखी जमीन पर बैठ जो देखता हैं आसमां पर, गिरती है बिजलियां धरती के भगवान पर, हो सके तो मुखड़े पर झूठी शान ले आना, ला सको तो एक हंसता हुआ किसान ले आना*
*गुलाब नहीं तुम नया ख्वाब ले आना ,कितनों के आंसू सूख गए आंखों में ,आते-आते तुम उनका हिसाब ले आना,जो बोल ना सके दिल की बातें ,होठों पर उनकी वो बात ले आना..*
नोबेल श्रीवास बिर्रा
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