नव वर्ष कविता-प्रकृति

😊 नव वर्ष कविता😊

उम्मीदों का दीप जलाये वर्ष नया,
आने वाला है, स्वागत हम करते हैं।

उथल-पुथल से भरा हुआ यह बीता साल
जाने वाला है सलाम करते हैं।।
भारत करवट बदल रहा है, बदलेगा
जंजीरों की कुछ कड़ियां है टूट रहीं।
परिवर्तन का दौर चला है धरती पर,
दीवारों से परत रूढ़ि की छूट रही।
सागर का यह ज्वार स्नेह की बस्ती को,
बहा न ले जाए इससे हम डरते हैं।
उम्मीदों का दीप जलाए वर्ष नया,
आने वाला है, स्वागत हम करते हैं।

खिली रही अंधेरों की लाली जन-जन की,
रहे ना कोई भूखा, सबका उदर भरे।
तन- मन -जीवन रहे उमंगों से भरपूर,
इंद्रलोक नीचे देखे तो जलन करें।
प्रकृति हॅंसे, जीवन भी नया सिंगार करें,
मिल -जुलकर ऐसे प्रयास कुछ करते हैं।
उम्मीदों का दीप जलाये वर्ष नया,
आने वाला है, स्वागत हम करते हैं।
प्रकृति😊

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