नव वर्ष 2022
इक्कीस को दो विदा बाईस को आने दो।
दुख को दो विदा खुशियों को छाने दो।
विश्व ने देखा कोरोना का तांडव भारी,
कोई न जाने कब तक ये रहेगा जारी,
प्रलय को दो विदा सृजन को होने दो।
पथराई हैं आंखें आंसू सबके सूख चुके,
देखें थे जो स्वप्न भविष्य सबके टूट चुके,
तिमिर को दो विदा सवेरा अब होने दो।
रिश्तों की कीमत भी सबने जान ली है,
पैसे पर है रिश्ते भारी ये बातें मान ली हैं,
नफ़रत को दो विदा प्रेम को छाने दो।
जिसपर गुजरी दर्द की कीमत वो ही जाने,
वक्त से पहले कोरोना ने ली कितनी जानें,
भौतिकता को दो विदा मानवता आने दो।
प्रकृति से छेड़छाड़ का था सारा परिणाम,
जीना है तो प्रकृति का करना है सम्मान,
बनावट को दो विदा मौलिकता आने दो।
सोनिया गाजियाबाद
उत्तर प्रदेश