तपस्या का छंद है,
है सुहाग का प्रतीक।
सदियों की परम्परा,
हरितालिका व्रत नीक।।
अमोघ अविरल प्रेम,
एक दूजे का विश्वास।
शिव गौरी का पूजन,
अचल सुहाग सदा पास।।
भादों की खिली धूप,
साहचर्य का वरदान।
जन्म जन्मांतर की डोर,
सच्चे दाम्पत्य की पहचान।
श्रृंगार भाव लगाव,
सजा कर रुप सलोना।
मेंहदी पूरित हथेली,
पति दीर्घायु की कामना।।
सजी थाल पूजा की,
अक्षत चन्दन पुष्प सजे।
महिमा शिव की न्यारी,
सुहागिनें आशीष मांगे।।
निर्जला करती उपवास,
भजन कीर्तन ही उपचार।
स्वयं प्रेम कविता है नारी,
त्याग इनके टिका संसार।।
अचल सौभाग्य की कामना ,
मन में रख प्रेम भावना ।
करबद्ध हो करे प्रार्थना ,
शिवाशीष बरसे घर अंगना।।
सुषमा सिंह, औरंगाबाद --------------------
( स्वरचित एवं अपने)