होली मनाने के खगोलिक, धार्मिक,समाजिक कारण।
जग में हर प्राणी अपनी इच्छा से दिल में करे धारण।
हमारी पृथ्वी इस समय होती है, निकटतम बिंदु सूर्य के पास।
किरणपात से उतरती है , सूर्य की ऊर्जा भी कुछ खास।
भर जाती है नकारात्मक उर्जा वातावरण में,
ढेर लगे ,चने ,मटर झाड़ पत्तों के पतझड़ में।
दूषित होकर,हानिकारक कीटाणु जन्म है देते,
होलिका दहन से वातावरण को शुद्ध कर देते।
हमारे पुराणों में विष्णु भक्त प्रहलाद की अद्भुत कहानी,
घमंडी पिता हिरण्यकश्यप, भस्म बुआ होलिका अग्नि में हो जानी।
प्रहलाद के जीवित बचने पर खुशियां सब मनाएं,
ढोल मृदंग मंगल गीत गाकर
मिलजुल उत्सव मनाएं।
द्वेष नफरत राख कर दे होली की ज्वाला में,
जात-पात ऊंच-नीच भी भस्म कर दें पवित्र भावना से।
अबीर लगाकर, मंत्र उच्चारण से,
खुशियां,सकारात्मक ऊर्जा भर दे।
यही समाज में खुशियों का कारण
मानव !आज बनो तुम इसका उदाहरण।
स्वरचित मौलिक रचना,
रेणु अब्बी’रेणू’
17/03/2022