नव वर्ष-कवि अजित वर्मा

कवि अजित वर्मा✍️

सर्द भरी जनवरी मैं इश्क तापता रहा।
आंखों की गहराइयां मैं यार नापता रहा।।

फ़रवरी और मार्च में बस प्यार का था वास्ता।
खो गया उन आंखों में ये लब भी कांपता रहा।।

अप्रैल मई जून यूं जुलाई अगस्त गुज़र गए।
तेरे घर की हर गली मैं हर रोज़ झांकता रहा।।

खत्म हुआ सितम्बर अक्तूबर में हम जुदा हुए।
बेवफा ने दिल से दिया फेंक सनम याद आ रहा।।

नवम्बर दिसम्बर मैंने ख़त में ही मौत लिख दिया।
खोया रहा मैं रात दिन कब यार मेरा आ रहा।।

रूठे हुए ही आ गया मेरा प्यार मेरे पास वो।
हुस्न और इश्क हुए एक वाह नया साल आ रहा।।

Ajit verma
Varanasi
8210933799

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