कविता
रहता है जिसमें हौसला,
आसमाँ में ऊँची उड़ान की,
वे कभी परवाह नहीं करते,
अपने जिस्म व जान की।
होते हैं जो औलाद फ़ौलादी,
चट्टानों से टकराते हैं ,
वे कभी उफ-आह नहीं करते,
नहीं करते फिक्र दुनियाँ जहान की।
कोई हमें कमजोर नहीं समझे,
नहीं “अकेला” समझ हमें डराये,
गर आ गये औकात पर अपनी,
जायेगी जान उस शैतान की।
हम हैं लाल इस धरती के,
देश के लिए मर मिटते हैं ,
करते हैं अपने देश की रक्षा,
खाकर कसम हिन्दुस्तान की।
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अरविन्द अकेला,पटना।