कविता रिश्तों की डोर

कविता
रिश्तों की डोर

पक्के रिश्ते वायदों के मौहताज नहीं होते।
बेशर्त रिश्ते, खुद की राह खोज हैं चलते।
रिश्तों को भी जरूरत होती है।
बस दो लोग चाहिए,
एक वो जो समझ सके,
दुसरा निभाना जाने,
वहीं निभाते रिश्ते हैं।
खुशियां कहती है,
मैं बांटने के लिए हूँ,
समेटने के लिए नहीं।
समेटने से खुशियाँ,
कम हो जाती है,
बांटने बढ़ती चली जाती है।

खुशियाँ मनाओ,
धूम मचाओ,
यही तो है जीवन का सार है।
सब मिल कर रिश्ते निभाओ,
ताजिंदगी निभाना हीं सार है।
रिश्ते जिन्दगी संग नहीं चलते,
रिश्ते तो एक बार बनते,
मौत के बाद भी रहते हैं।
जिन्दगी रिश्ते संग चलती है।
मत कर गुरूर इतना कि,
अपनों का साथ छूट जाये।
आस पार रह कर सदा,
दूर हो पन्ना खो भी जाये।
आज तो ये माहोल बना है
की रिस्ते बोझ लगते हैं।
जिन्हें ढ़ोंना पड़ता है ।

two types of trees

पुष्पा निर्मल
बेतिया बिहार___✍️

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