नववर्ष में
आओ ले प्रण नववर्ष में
भाँति कमल के खिलते रहे हर्ष मे
न ईर्षा न वैर हो, न कोई भी गैर हो
प्यार ही रहे जीवन के निष्कर्ष में।।
आओ ले प्रण नववर्ष में…..
आँखे हैं पर अँधे हैं, हर क्षण प्रलाप करे
स्वयं दुख से न आहत हैं, दूजे सुख विलाप करे
जिसको देखा है जैसा,वैसा उसको हैं पाया
नेत्र दोष है मुझको ,बार बार अनुलाप करे
समय नया हैं आओ बदले
रहे न अपकर्ष में..
आओ ले प्रण नव वर्ष में……..
पनप रही किलनियाँ बहुत, देश में
दुर्जन भी आ बसे हैं साधु के वेश में
कानून को तोलते ,मूल्य सबका बोलते
देश में अपने,लगता हैं परदेस में
विपदा बड़ी है, समक्ष सबके खड़ी हैं
मोल कौन ले भारतवर्ष में
युवाओं से आस हैं, अभी न जिनका सन्यास हैं
न देंगे बदलने घनघोर घटा को ,संघर्ष में
आओ ले प्रण नववर्ष में…
दुशासन भी है शर्मिंदा,आज के इन हैवानों से
जननी देखो चीख रही है ,अपने ही मकानों से
नारी तेरी रक्षा को ,न देव धरा पर आएंगे
आएंगे क्षण भर भी तो ,दुनिया के ,दोष लगाएँगे
हर गली चौराहे पर ,एक असुर मिल जाएगा
तुम बन जा ना दुर्गा,महिसासुर मर जाएगा
मुझको तो तुम माँ समझो,औरों पर आँखे रखते हो
पुत्र तुम भी जा मिले हो क्या शैतानों से
रूप अनेक हैं जिनके,आओ नमन करें
खिल पाये साथ उनके सहर्ष में…
आओ ले प्रण नव वर्ष में……
नेकी की राह पर हो हमारे कदम
आओ मिलके आगे बढ़ते चले हम
बीते पलों को न याद में लाए
आपने आज में जीते चले हम
*”माँझी”* की है जरूरत जीवन उत्कर्ष में.
आओ ले प्रण नववर्ष में….
*✍️ महेश वर्मा “माँझी”*
*72 ,मोहल्ला रेगरान,हनोतिया ,टोंक(राजस्थान)*
*संपर्क:- 7733027970
बहुत सुंदर रचना
सतीश बब्बा
Bhot sundar
अतिसुन्दर रचना
Bahut pyari rachnaaa🌷🌷🤗🤗🤗🤗
बहुत खूब कवि मित्र।😊