कविता
मैना हुए परेशान
बेघर होकर मैना अब हुई परेशान।
क्यों खा गए लोग उसका बसेरा
बनाने को अपना बड़े बड़े मकान।
क्या बेघर हुई मैना का दर्द सही में
यह बेदर्द जमाना समझ पायेगा।
क्या बेघर हुए मैना का घर कभी
फिरसे भला कोई बसा पायेगा।
आखिर क्यों उजड़ रहे बने हुए बागान।
यही सोचकर शायद मैना हो रही परेशान।
जिस पेड़ पर वह फुदक फुदक कर
कभी खुशी से नाचती गाती थी।
जिस पेड़ पर कभी वह भोली मैना
अपनी नए नए सपने सजाती थी।
उस जगह अब इंसानों का बसेरा है
किन्तु उसी मकान पर वह मैना
छन भर क्या ठहरती न जाने क्यों
उसपर लोगों का गुस्सा घनेरा है।
यही सोचती बेचारी वह मैना।
क्यों इंसानियत खत्म हो रही
बन रहे जाने क्यों लोग हैवान।
यही सोचकर मैना हो रही परेशान
जाने कितनों की घर और जाएगी।
जाने कितने पेड़ और कटेंगे व
और कितने बनेंगे ऐसे मकान।
प्रकाश कुमार मधुबनी’चंदन’