हे! दुनिया के मालिक!
हे! दुनिया के मालिक मेरी
अम्न-ओ-अमान से झोली भर दे।
फिजा न माँगे भीख कहीं,
खुशबू से उसको भर दे।
नदियों खून बहाया हमने,
तब जाकर मिली आजादी,
चमन का खून करे न कोई,
रोक नफरत की आँधी।
टूटे न कोई तार प्यार का,
डगर मेरी आसान तू कर दे,
हे! दुनिया के मालिक मेरी
अम्न-ओ-अमान से झोली भर दे।
फिजा न माँगे भीख कहीं,
खुशबू से उसको भर दे।
दहशत का माहौल हेै जग में,
फ़ौरन अँधियारा काट दे,
बारूद सेज सो रहा है जग,
बारूद का धुआँ छाँट दे।
सुबह-शाम के उन हाथों को ,
तू नूर से अपने भर दे,
हे! दुनिया के मालिक मेरी
अम्न-ओ-अमान से झोली भर दे।
फिजा न माँगे भीख कहीं,
खुशबू से उसको भर दे।
रहे तहजीब हमारी कायम,
दुआ-सलाम भी रहे कायम,
पड़ोसी का दुख हम समझें,
पड़ोसी भी मेरा दुख समझे,
देकर होंठों को नग्मा तू,
हरेक का घर रोशन कर दे।
हे! दुनिया के मालिक मेरी
अम्न-ओ-अमान से झोली भर दे।
फिजा न माँगे भीख कहीं,
खुशबू से उसको भर दे।
नंगी मौत न नाचे कहीं,
खौफ न जिन्दा रहे कहीं,
टूटे न मोहब्बत के धागे,
मनहूस न आए शाम कहीं।
आँधी से न चाँद बुझे,
जुगुनू को नया पर दे-दे।
हे! दुनिया के मालिक मेरी
अम्न-ओ-अमान से झोली भर दे।
फिजा न माँगे भीख कहीं,
खुशबू से उसको भर दे।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई