मौसम फागुन का

मौसम के बदलाव से,
बदल रहा तासीर ।
सभी जनों को हो रही,
अलग-अलग तन पीर ।।1

अलग-अलग तन पीर,
ठंडी बन गई फांसी ।
बच्चे,वृद्ध,युवा,
सभी को सर्दी-खांसी ।।2
कुछ जन करें सराहना,
कुछ जन देर रहे गारी ।
‘स्नेही’ स्वाभाव परिवर्तन,
मौसम की है बलिहारी ।।3
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*”मौसम बनाम फाल्गुन*”

फाल्गुन के आते ही ,
आई,तापमान में बाढ़ ।
वनस्पति करने लगी,
नित नव सृजन जुगाड़ ।।

नित नव सृजन जुगाड़,
फूल रही तरुवर डाली ।
वन भूमि पट रही,
झड़ने लगी हरियाली ।।
वाह,ऋतु राज वसंत,
तेरा भी खेल निराला ।
तरह-तरह के रंगों से,
फाल्गुन को रंग डाला ।।
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रचना- लखन कछवाहा’स्नेही’
मंडला,म.प्र (भारत)

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