कविता /शायरी
मेरी कलम मेरी पूंजी
आज फिर चार दिवारी में
मेरी चित्कार गूंजी है
कलम ही तो है मेरी हमनवां
यही तो मेरी पूंजी है।।
आज फिर दर्द में देख मुझे ये
मेरी कलम रूक ना पाई
मिल जज़्बातों से मेरी कलम
आज लिख मुझे पूजी है।।
पूछते सवाल ये मेरे जज़्बात
मेरी कलम सच मुझसे
क्या जख़्मी हुआ दिल तेरा
तेरी आंखें रो कर सूजी हैं।।
समझाती मेरी कलम मुझको
क्यों यूं घुट-घुट के रहती तू
कहती कुछ ना पूछो मुझसे
दर्द-ए जिंदगी मिली दूजी है।।
कब तलक तुम यूंही दर्द में
जीती जाओगी वीणा आखिर
कहती वीणा मेरी कलम सुन
तेरे बिन मेरी सांसें अधूरी है।।
आज फिर चार दिवारी में
मेरी चित्कार गूंजी है
कलम ही तो है मेरी हमनवां
यही तो मेरी पूंजी है।।
आजादी के अमृत महोत्सव हर घर तिरंगा
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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