नव वर्ष -राजकुमार छापड़िया

नव वर्ष

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कैसे दिल का हाल बतायें ।
कोरोना से जान बचायें ।।
कब तक इससे हम घबरायें ।
नए साल का जश्न मनायें ।।

कोरोना से ही डर लागे ।
बोले तू मत आना आगे ।।
छिप कर बैठे घर में ऐसे ।
शेर छिपा जंगल में जैसे ।।

जान बची तो लाखों पायें ।
कोरोना से हम बच जायें ।।
कबतक घर में छिप रह पायें ।
नए साल का जश्न मनायें ।।

होली अरु दीवाली आयी ।
घर में होती सदा सफाई ।।
नहीं पटाखे हमने छोड़े ।
नहीं मिठाई लाने दौड़े ।।

भले नहीं त्योहार मनायें ।
कोरोना से जान बचायें ।।
भय को अब हम दूर भगायें ।
नए साल का जश्न मनायें ।।

हमने टीका भी लगवाया ।
मगर नहीं छुटकारा पाया ।।
चलो काम पर हाजिर होते।
थके यहाँ अब सोते-सोते ।।

गृह कैद आजाद हो जायें ।
कोरोना का भूत भगायें ।।
नई उमंगे फिर भर जायें ।
नए साल का जश्न मनायें ।।

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✒️ *राजकुमार छापड़िया* 🙏🙏

15 thoughts on “नव वर्ष -राजकुमार छापड़िया”

  1. 👌👌लाजवाब सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ 💐💐👍

  2. कोरोना का प्रभाव और आने वाले समय में लोगों का हश्र दर्शाने वाली अनुपम और अत्यंत उत्कृष्ट रचना । बहुत बहुत बधाई आदरणीय भाई साहब ।

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