जख्म नया

नया जख्म

तेरी यादों का तो समुंदर,
दिन-रात अश्रु बन बहता है।
तू मुझको क्यों गया छोड़के,
दिल बार-बार ये कहता है।
तेरी हर बात को तो हमनें,
दिल से ही अपनाया था।
तेरी खुशी की खातिर हमनें तो,
तेरा साथ निभाया था।
तुझ पर कोई आंच न आये,
अकेले ही सारा गम उठाया था।

यहाँ टच कर पढिये एक से एक रचनाओं को
तेरे सम्मान की खातिर मैंने,
अपना अपमान करवाया था।
प्रेम की तो इस पीड़ा को,
पर वो न समझ पाया था।
अब जा रहा है वो हमें छोड़के,
इक नया जख्म दे डाला है।
अब हमसें तो मुँह मोड़के,
प्रेम पर तो विराम लगा डाला है।

किरन झा (मिश्री)

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