सता के गलियारे में,
जोर आजमाइश है।
बुद्धजीवी पैताने खड़े,
उचक्के सता हथियाए हैं।।
कहानी पढ़ने यहाँ टच कीजिये
कहानी सिंदूर
आरोपों प्रत्यारोपों का दौर,
शालीनता गौण है।
ये नीति – नियंता देश के,
एक – दूजे को गरियाए हैं।।
छप्पन भोग थाल सजी,
मर्सीडीज से आते हैं।
सुख – सुविधाओं से परिपूर्ण,
जनता का माल उड़ाए हैं।
कुर्सी के लिए मर मिटते,
हर दांव-पेंच आजमाते हैं।
स्विस बैंक में बढ़ते खाते,
गरीबी – गरीबी चिल्लाए है।।
कहीं दंगे में शामिल,
कहीं भाषण देते भड़काऊ।
अपना उल्लू सीधा करते,
जनता को बुद्धू बनाए हैं।।
आवाज उठाने वालों को,
कैदखाने भिजवाते है।
सत्ता मद में चूर बैठे,
जंगल राज बनाए हैं।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
———————–
( सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)
वाह,बहुत खूब।