नोएडा का वो टॉवर !
( शायरी/कविता/नज़्म )
नज़्म
भ्रष्टाचार की चादर जो ओढ़ा था टॉवर,
नौ सेकण्ड में धराशायी हुआ टॉवर।
कितने परिन्दे वहाँ बनाते आशियाना,
बहार से पहले जमींदोज हुआ टॉवर।
तबाह हो गए कितने बेचारे फ्लैटवाले,
ख्वाब उनका अंदर से रुलाया टॉवर।
तल्ख हकीकत कब समझे हैं बिल्डर,
गर्दिश के अब्र वही बुलाता टॉवर।
एक-एक पाई लोग जोड़ते हैं कैसे,
जी-तोड़ कमाई को राैंदते हैं टॉवर।
लालफीताशाही की लालच के ऊपर,
ऊँची अट्टालिकाओं में ढलते हैं टॉवर।
भ्रष्टाचार की जुल्फें होती हैं पेंचदार,
चाँद-सितारों से बात करते हैं टॉवर।
आसमां सोता है देखो इनकी बाँहों में,
गरीबों के आँसू कहाँ पोंछते हैं टॉवर।
वो भी दिन जल्द आएगा मुल्क में,
कोई भी अवैध न बना पाएगा टॉवर।
कानून के हाथ होते हैं बहुत बड़े,
बारूद से न उड़ाया जाएगा टॉवर।
रामकेश एम.यादव (कवि,साहित्यकार),मुंबई