पलकों की छांव में
रहता था पलकों की छांव में
माई वो तेरे संग जब मैं गांव में
सुकून कि नींद मैं भी सोता था
निकला था कभी घर से आंखों के ताव में।।
पलकों कि छांव में जी भर बतियाता था
कभी-कभी तो मुंह जोरी कर सताता था
तेरा दिल माई न जाने कितनी बार दुखाया
आज कद्र तेरी माई सुरक्षित तेरी पनाहों में।।
पलकों कि छांव में सुकून से खाता था
शहरों जाने कि जिद्द तुझसे कर जाता था
लाख समझाई पर एक बात न तेरी मानी
दर्द ही दर्द भरा चकाचौंध कि राहों में।।
माई पलकों के छांव में लौट आना चाहता हूं
अपना हर गम़ तेरे आंचल में छुपाना चाहता हूं
फिर वही गांव के गलियारे पाना चाहता हूं
हां मैं लौट आना चाहता हूं।।2।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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