पिता-माता का ऋण हम पर

विषय—ऋण/कर्ज
विधा— गीत । धुन-स्वातंत्र

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मनुष्य का तन मिला हमको,
फर्ज हमको चुकाना है ।
मानवी कर्मों को करके,
कर्ज हमको चुकाना है ।।1।।
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मनुष्य तन दाता ईश्वर का,
हमें गुणगान गाना है ।
सेवा,सत्संग माध्यम से,
कर्ज हमको चुकाना है ।।2।।
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पिता-माता का ऋण हम पर,
जगत में सबसे भारी है ।
पितृ देवों की सेवा कर,
कर्ज हमको चुकाना है ।।3।।

परिजन,मित्र रिश्तेदार,
अग्नि देव,पशु-पक्षी ।
इन्हें भोजन खिला करके,
कर्ज हमको चुकाना है ।।4।।

हमारी जिन्दगी जल से,
शुद्ध पीना,पिलाना है ।
पितृ तर्पण क्रिया करके,
कर्ज हमको चुकाना है ।।5।।

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रचनाकार–लखन कछवाहा ‘स्नेही’

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