चलभाष-काव्योत्सव
*विचार और भाव का संगम स्थल है-साहित्य*
मां कात्यायनी ग्याराहजारी-राष्ट्रीय-काव्य संस्थान
‘विमल भवन’, विकास नगर, लखनऊ-22
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+सम्पत्ति कुमार मिश्र “भ्रमर बैसवारी” छंदकार-
भाद्र- शुक्ल द्वादशी को, विष्णु- वामन स्वरूप,
बली नृप के समीप, याचक हो आये हैं।
संकल्पित हो के बलि, बोला चाहिए क्या विप्र,
कर विचार मन में, आप द्वारे धाये हैं।।
मांगी तीन पग भूमि, आश्चर्य चकित बलि,
देखा शुक्राचार्य ओर, गुरु भी मुस्काये हैं।
किया ध्यान गुरुदेव, पहचाने वामन को,
नृप को किया सतर्क, विष्णु कृपा लाये हैं।।
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अासुराधिपति बलि, क्रूरता में दक्ष किंतु,
प्रहलाद वंशज हैं, ज्ञान भक्ति में भरा ।
एक पग धरा में तो, रखा दूजे को आकाश,
पग तीसरा उन्होंने, बलि सिर में धरा।।
अहंकारयुक्त दान, धन,वैभव, ऐश्वर्य,
दानव बनाता शीघ्र, देता नर्क में गिरा।
अहंकार शून्य हुआ, लघु दीखता “भ्रमर”,
किंतु रहता सदैव, दुष्ट उससे डरा।।
+डा.सुरेश प्रकाश शुक्ल (साहित्य भूषण)-
लखनऊ ‘भूतनाथ शिव मंदिर’ प्राचीन,
शांति औ अध्यात्म क्यार संगम देखात है।
धार्मिक-दर्शनीय, पर्यटन स्थल अनूठ,
चहुँओर पसरा व्यापार न अंबात है।।
शिव परिवार साथ, हनुमान जी की मूर्ति,
संस्थापक भूतनाथ ,प्रतिमा भी साथ है।
पंचमुखी दुर्गा, काली, देविनि के दर्शनार्थ,
भीर आवै द्याखै नहीं, दिन है कि रात है।।
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बारिश से राहत मिली, समस्याएं अम्बार।
पेड़ गिरे,सड़कें धंसीं, गिरे घरौंदा-द्वार।।
-कोरोना कुछ कम हुआ, अब डेंगू का वार।
बच्चों का दुश्मन बना, रहस्यमयी बुखार।।
-‘सरला देवी चौधरी’, ब्रिटिश रूल दौरान।
आंदोलित सक्रिय रहीं, नारी के उत्थान।।
-स्वाभिमान फूंका विगुल, ‘चौधुरानी’ महान।
बहना रवीन्द्रनाथ की, किया बड़ा बलिदान।।
-जितनी ईंधन की खपत, चौथाई उत्पाद।
ताज्जुब नहीं भविष्य में, आए नानी याद।।
+डॉ सत्यदेव द्विवेदी “पथिक” (महामंत्री प्रतिष्ठा)-
कभी-कभी बच्चों से भी, है सीख मिला करती,
जहाँ ज्ञान मिलता हो वहीं गुरुद्वारा है ।
सुत बनितादि सभी, तेरे ही हैं दिये पाये,
तेरा तुझे अर्पन क्या लगता हमारा है ।।
नश्वर क्षण भंगुर सृष्टि का जड़ चेतन,
असार सार संसार प्रपंच ये सारा है ।
वंदन अभिनन्दन ज्ञान पुंज पूज्य पाद,
गुरु की कृपा प्रसाद जीवन को तारा है ।।
+कर्नल प्रवीण त्रिपाठी(नोएडा)-
बीत गये हैं नौ दिवस, चौदस आयी पास।
निकट विदाई का दिवस, होता हृदय उदास।।
उत्सव के इन नौ दिनों, चँहुदिशि मचती धूम।
नृत्य गीत में हो मगन, सब जन जाते झूम।।
जीवन से सबके सदा, विघ्न हरें गणराज।
नित अपना आशीष दें, सकल सँवारें काज।।
+श्री मयंक किशोर शुक्ल “मयंक”-
हिंदी शुभ,दहकी नहीं,नहीं बनी वह आग।
हिंदी मानव उर अधर, प्रेमभरे अनुराग।।
-हिंदी अमृत नीर है,हिंदी पर्वत देख।
हिंदी सागर प्राण है,हिंदी प्रभु का लेख।।
+श्रीमती गीता पांडे ‘अपराजिता’ (रायबरेली)-
शनि देव का जाप करो मिल जाये मान-सम्मान।
उड़द तिल तेल काला वस्त्र देके करो कल्याण।
लोहे रथ पर करे सवारी इससे इनको प्यार,
संकट भेदन भी करें दया दृष्टि इनकी महान।
+डॉ. विद्यासागर मिश्र “सागर”-
झाँसी वाली रानी ने ये कहा था फिरंगियों से,
झाँसी नहीं दूंगी तम्हें मार के भगाउंगी।
लड़ती रहूंगी सदा देश की सुरक्षा हेतु,
बूंद-बूंद रक्त की स्वदेश पे चढ़ाऊँगी।
कर तलवार ले के रण में पडूंगी कूद,
झाँसी नहीं दूंगी यह बचन निभाऊँगी।
चाहें कितने ही शक्तिशाली ये फ़िरंगी होवें,
दनादन काट मुंड रण में गिराऊँगी।
+श्री नन्दलालमणि त्रिपाठी (गोरखपुर)-संवेदना का साक्ष्य ‘चलभाष’ हृदय हर्ष विसाद अविरल भाव जीवन पध्दति परम्परा परमार्थ चलभाष।।
असंभव सम्भव मध्य प्रयास परिणाम नरोत्तम पुरूषोत्तम रीति नीति गीत मीत बोली भाषा भाव ‘भ्रमर’।। पथ की प्रेरक प्रेरणा महत्व जीवन, जीवन संग्राम कुरुक्षेत्र मतलब महत्व विद्वत मनीषि परम प्रकाश।। आदित्य सूर्य सौर्य प्रखर निखर अभिनव अनुभूति अवनी सोच साहस कल्पना परिकल्पना सिद्धान्त विद्वत आकाश साहित्य मर्मज्ञ महान।।
+सुकाव्य-सर्वश्री-गोबर गणेश, मनमोहन बाराकोटी, नीतू मिश्रा, शीलावर्मा ‘मीरा..
संयोजक सम्पत्ति कुमार मिश्र “भ्रमर बैसवारी” ने सभी मनीषियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।