चलभाष-काव्योत्सव
प्राची साहित्य एवं अवधी शोध संस्थान

+चलभाष-काव्योत्सव
ऊँ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवा च धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
“प्राची साहित्य एवं अवधी शोध संस्थान”
9, पवनपुरी (आलमबाग), लखनऊ
संस्थापक-अध्यक्ष/संयोजक:
डा.सुरेश प्रकाश शुक्ल(साहित्य- भूषण)
गोष्ठी संचालक:
श्री सम्पत्तिकुमार मिश्र ”भ्रमर बैसवारी”-छंदकार
बुधवार, 08 सितम्बर, 2021
अध्यक्षता-श्री आनन्दमोहन द्विवेदी(नैकामऊ)
मु. अ.-श्री एम.सी.द्विवेदी (पूर्व डीजीपी)
वि.अ.-श्री सच्चिदानन्द तिवारी ‘शलभ शास्त्री’
प्रो.बी.जी.द्विवेदी (लालबंगला, कानपुर)
डा. शोभा वाजपेयी (वरिष्ठ कवयित्री)
वाणी वंदना-श्री अनिल किशोर शुक्ल “निडर”
श्री पीयूष मिश्र “भइयाजी”- छंदकार
प्रो.वी.जी. गोस्वामी(पूर्व ला लविवि)
श्रीमती आशा अवस्थी (जबलपुर,म.प्र.)
डा. संगमलाल त्रिपाठी ‘भंवर’ (प्रतापगढ़)
श्री नरेशदीक्षित(संपादक-हनुमत कृपा पत्रिका)
डा. प्रतिभापाण्डेय (देवनगर, कानपुर)
श्री कैलाशप्रकाश त्रिपाठी “पुंज” (वरिष्ठ कवि)
डा. अलकामिश्रा(डीएसएनपीजी कालेज, उन्नाव)
+डा.सुरेश प्रकाश शुक्ल (साहित्य भूषण)-
बख्शी का तालाब,लखनऊ मइहाँ स्थित यू,
‘नागेश्वर महादेव मंदिर’ मशहूर है।
सैकरन गांवन मा महिमा ईकी अपार,
आराधना किहे जानौ मनोकामना पूर है।।
सत्रहवीं सदी मा स्थापित ई मंदिर तीर,
त्रिपुर चंद्र बख्शी का तालाब नाई दूर है।
मान्यता कई सदी प्राचीन प्रकट प्रतिमा,

सालन से नाग रात्रि पूजा करैम चूर है।।

‘आड़ू’ गोल-गोल गूलर कस नरम फल,
सेहत तईं बहुउपयोगी, लाभदाई है।
गर्मी मैंहाँ मिलति हैं पीले-लालि पाकि फल,
कश्मीर,हिमाचल, उ.ख. फसल उगाई है।।
मधुमेह, बवासीर, बुखार औ कफ-पित्त,
कब्ज दूरि करै केरि, अचूक या दवाई है।
पथरी, गठिया, दुर्गन्ध मइहाँ लेप मलौ,
धातुवर्धक, पेट दर्द – पथरी कामाई है।।
+श्री सम्पत्तिकुमार मिश्र”भ्रमर बैसवारी”छदकार-
देश को युवाओं पर, गर्व रहा है सदैव,
मातृभूमि से न कभी, युवा मुंह मोड़ेंगे।
तन-मन-धन-बल, देश-हित में समस्त,
राष्ट्र-रक्षा हेतु वीर, शत्रु को निचोड़ेंगे।
देश के विरोधियों की, खींचेंगे जुबान और-
भृकुटी करे जो टेढी, दोनों आंख फोड़ेंगे।
छोड़ेंगे नहीं “भ्रमर”, दुष्टों, द्रोहियों को कहीं, .
भारत के युवा उन्हें, ढूंढ-ढूंढ़ तोड़ेंगे।।
+डॉ सत्यदेव द्विवेदी “पथिक”-जग पावन भाव भरी धरती, प्रभुके पद चाव ढरी धरती मन के सब पाप जरी धरती, निज संस्कृति पंथ धरी धरती।। छल दंभन मोह मरी धरती, मन जीव सभी सुथरी धरती। जप राम कृपाल तरी धरती, भव रोगन नाश करी धरती ।।
+कर्नल प्रवीण त्रिपाठी (नोएडा)-लोग खोजें नित खुशी, पर झाँकते मन में नहीं। सूक्ष्म नज़रों से न परखें, वह छिपी है हर कहीं। भागते मृग की तरह, जो नीर मरु में खोजता। जब शमित हों कामनाएँ, तो मिलें खुशियाँ यहीं।
+श्री मयंक किशोर शुक्ल “मयंक”-कर में माखन लपेटे, उधर श्याम जी। मन से वंशी बजाते, इधर श्याम जी। यमुना तट पे खड़ीं, गोपियाँ कह रहीं, जिधर देखूँ मिले हैं, सुघर श्यामजी।
+श्री नन्दलालमणि त्रिपाठी (गोरखपुर)-हताश है निराश है जीवन पथ अंधकार है चल पड़ो
पुज्य संपत के साथ ‘चलभाष’ उत्सव उत्साह उल्ल्लास है।। भय कुंठा को तोड़ती मानव अन्तर्मन शक्ति का ‘भ्रमर’ पल प्रति पल सांचार है।। जीवन जन्मेजय उद्देश्य अवसर उपलब्धि अनंत ‘भ्रमर’ प्रवाह है।।
+श्री ज्ञानेन्द्र पाण्डेय (अवधी-मधुरस,अमेठी)-
हरी हाथ मेहंदी रचि , करती है सिंगारि। पांवु महावरि राँजती , अलबेली इकु नारि। अलबेली इकु नारि, नयनु महिं काजरि डारे घूमतु कूँचा-
गली, रसभरी सांझि-सकारे। “मधुरस” कहि नहि जायि, लाजु-शरमु बा सबु मरी। रसिकै भलु बौरायिं, गावैं मिलु जय-जय हरी।।
+सुमधुर काव्य सर्वश्री-पीयूष मिश्र “भइयाजी”, राजेंद्र शुक्ल”राज”, नीतूमिश्रा,संध्या त्रिपाठी।

  • संयोजक डा. सुरेश प्रकाश शुक्ल

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