प्रेम प्रवाह
प्रेम तो बस प्रवाह है,
प्रेम मिलन की चाह है।
प्रेम में उतरकर देख,
बंकिम प्रेमिल राह है।
प्रेम सदा नि: स्वार्थ हो,
मीरा बनी गवाह है।
नद से गहरा प्रेम,
प्रेम सागर अथाह है।
राधा कृष्ण अमर प्रेम,
ना जग की परवाह है।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद
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(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं मौलिक)