रखी में बहिन ने मांगा तोहफा
इस राखी पर भैया मुझे,
बस यही तोहफा देना तुम।
रखोगे ख्याल माँ-बाप का,
बस यही एक वचन देना तुम ,
बेटी हूँ मैं शायद ससुराल से
रोज़ न आ पाऊंगी।
जब भी पीहर आऊंगी,
इक मेहमान बनकर आऊंगी।
पर वादा है ससुराल में संस्कारों से,
पीहर की शोभा बढाऊंगी।
तुम तो बेटे हो इस बात को
न भुला देना तुम।
रखोगे ख्याल माँ बाप का बस
यही वचन देना तुम।
मुझे नहीं चाहिये सोना-चांदी,
न चाहिये हीरे-मोती।
मैं इन सब चीजों से
कहां सुःख पाऊंगी।
देखूंगी जब माँ बाप को
पीहर में खुश।
तो ससुराल में चैन से
मैं भी जी पाऊंगी।
अनमोल हैं ये रिश्ते,
इन्हें यूं ही न गंवा देना तुम।
रखोगे ख्याल माँ बाप का,
बस यही वचन देना तुम।
वो कभी तुम पर या भाभी
पर गुस्सा हो जायेंगे।
कभी चिड़चिड़ाहट में
कुछ कह भी जायेंगे।
न गुस्सा करना न पलट के
कुछ कहना तुम।
उम्र का तकाजा है यह,
भाभी को भी समझा देना तुम।
इस राखी पर भैया मुझे
बस यही तोहफा देना तुम।
रखोगे ख्याल माँ बाप का,
बस यही वचन देना तुम।।
जय जिनेंद्र
संजय “बीना” मुंबई