भारत आजादी की जंग-1857
वीरांगना रानी आवन्ति बाई लोधी का योगदान
* वतर्ज–आल्हा छंद*
सुमर शारदा श्री नारायण,
निरंकार का ध्यान लगाय ।
मात-पिता गुरु सुमिरन करके,
सरस्वति चरनन् सिर नाय ।।
भारत आजादी की गाथा,
आल्हा छंद में रहा सुनाय ।
अठ्ठारह सौ सनतावन की
भारत दुर्दशा सुन लो भाय ।।
व्यापारी बन आये विदेशी,
भारत भ्रमण किये मन लाय ।
सेंध लगाये हैं भारत में,
सत्ता जाल दिये फैलाय ।।
फूट कराये राजाओ में,
आपस में दिये इन्हें लड़ाय ।
दास बना लिये कमजोरों को,
शासन झंडा दिये गड़ाय ।।
यहां की बातें यहीं रोक के,
महां कौशल की सुरत लगाय ।
आजादी शुरुआत बखानूं
क्रान्ति हृदय गई समाय ।।
प्रथम आहुति दी आवन्ति,
क्रान्ति की दी आग लगाय ।
भड़क गई जनता भारत की,
सत्ता विदेशी नहीं सुहाय ।।
गाथा गाता हूं इतिहासी,
सब जन सुनना ध्यान लगाय ।
वीरांगना की अमर कहानी,
भारतवासी के मन भाय ।।
राजा विक्रमादित्य कहावें,
राज्य रामगढ़ सुंदर नाम ।
रानी आवन्ति को जानो,
क्षत्राणीं थी बल की धाम ।।
राज-पुत्र थे दो,रानी के,
अमान और शेरसिंह नाम ।
पांच बरस के नीचे दोनों,
जानत नहीं अभी संग्राम ।।
दूध के दांत नहीं टूटे थे,
बेटे हुए नहीं थे जवान ।
अनायास ही राजा मर गए,
रानी देश पे भई कुर्बान ।।
यहां की बातें यहीं पे छोड़ूं,
पिछला दूं इतिहास सुनाय ।
अट्ठाररह सौ सत्तावन की,
भारत की रहा दशा सुनाय ।।
छोटी-छोटी रियासत हो गईं,
राजा टुकड़ों में बांट जाय ।
शासन चल रहा अंग्रेजों का,
कोई आवाज उठैया नाय ।।
अंग्रेजों की फूट नीति से,
संगठन अभी बना था नाय ।
लूट-खसोट मची भारत में,
राजा-प्रजा सोच में छाय ।।
निर्धन और निर्दोष प्रजा पर,
गोरे कोड़े रहे बर्षाय ।
जब यह बात सुनी आवन्ति,
गुस्सा वदन में नहीं समाय ।।
आजादी छिन गई देश की,
भारत लिया गुलाम बनाय ।
रानी सोचे अपने मन में,
भारत दूं आजाद करवाय ।।
(रानी का राज दरबार में जाना और क्रान्ति के लिए प्रेरित करना )
रानी दीवानी आजादी की,
चलीं सभा का ध्यान लगाय ।
विक्रमादित्य द्वारा लगा था,
बीच कचहरी में पहुंची आय ।।
बोली रानी सरदारों से,
हमको जीने का है धिक्कार ।
करो तैयारी आजादी की,
गोरों का नहीं यहां अधिकार ।।
पाती भेजो सब राजा पे,
कुछ सैनिक तक भेजी जाय ।
सिंदुर चुड़ी की पुड़ियाऐं,
नट-नटनी के माध्यम जाय ।।
पाती बंट गईं आवन्ति की,
क्रान्ति खबर फैल रही जाय ।
यह संदेश लिखा पाती में,
क्षत्री सब सुन लो कान लगाया ।।
पानी राखों जो राजपूतों का,
क्रान्ति को जाओ तैयार ।।
भारत को आजाद करा दें,
जीनें का मत करो विचार ।।
डर लागे तो चूड़ी पहनों,
रौली मांग में लेय भराय ।।
भेष जनाना धर घर बैठो,
अपनी देह को लेय छिपाय ।।
पाती पढ़-पढ़ राजाओं के,
मन में बहुत खुशी हो जाय ।
रण चण्डी अवतार लयी हैं,
क्रान्ति कारण पहुंची आय ।।
(राजा और सेनिकों का आजादी की क्रान्ति के लिए तैयार होना )
बढ़ गया हौंसला राजाओं में,
सैनिक भी कुछ हुए तैयार ।।
लोधी ठाकुर ब्राम्हण से गए,
आदिवासी वे-सुम्मार ।।
देवीसिंह सज गए शाहपुरा से,
कानपुर से सजे नानाराव ।।
वरखेड़ा से सजे जगत सिंह,
बहादुर लोधी सजे हर्षाय ।
राघव गढ़ से सरजू से गए,
पंडित कर्ण देव से जाय ।।
जबलपूर से सजे तिवारी,
बल्देव जिसका नाम कहाय ।।
सूबेदार वह अंग्रेजों का,
सैनिक जन को रहा भड़़काय ।।
जितने सैनिक थे भारत के,
रानी संदेशा दियो पठाय ।
सेना भड़क गई अंग्रेजों की,
छावनी कईयों दईं उड़ाय ।।
भारत कब्जे में भईं रियासत,
गोरे गए सनाका खाय ।।
अंग्रेजी अफसर वाडिंग्टन,
अंग्रेजी सेना सरदार ।
करी तैयारी वाडिंग्टन ने,
वह लड़ने को हुआ तैयार ।।
(रानी आवन्ति और वाडिंग्टन का प्रथम संग्राम)
बजे नगाड़ा तोपें दागी,
पहुंचा किला रामगढ़ जाय ।
बोला वाडिंग्टन रानी से,
दुश्मन तेरा बुरा हो जाय ।।
सैनिक मेरे तुम भड़कायी,
कई रियासत छीनी जाय ।।
आग लगाई है क्रान्ति की,
तुझको जिन्दा छोड़ूं नाय ।।
सुन के जबाव दिया रानी ने,
बिल्कुल सांची रहा वताय ।
लेकिन बात करो दूरी से,
आगे कदम बढ़इयो नाय ।।
एक कदम जो बढ़ा अगाड़ी,
धड़ से दूंगी शीश उड़ाय ।।
ज्यों ही आगे बढ़ा वाडिंग्टन,
रानी गई रोष में आय ।
बात-बात में बतबड़ हो गई,
दोनों को मार ही मार देखाय ।।
चलीं तलवारें दोनों तरफ से,
ढाल खटाखट रहीं सुनाय ।
रण कौशल रानी का देख के,
वाडिंग्टन मन में घब राय ।।
आवन्ति रानी के आगे,
वाडिंग्टन सेना गई घब राय ।
भगदड़ मच गई है सेना में,
पीछे मुड़ कोई देखा नाय ।।
जैसे दुर्गा महिषासुर संग,
तलवारों की करीं बौछार ।
ऐसे वाडिंग्टन-आवन्ति,
इक-दूजे पर करते वार ।।
पहले मारी हैं घोड़ा को,
वाडिंग्टन नीचे गिरा आय ।
घोड़ा बढ़ाई हैं रानी ने,
वाडिंग्टन पर दईं चढ़ाय।।
धन्य है घोड़ा आवन्ति का,
क्षत्री सा जौहर दिख लाय ।
टाप मार के वाडिंग्टन को,
उसे निहत्था दिया बनाय ।।
उतरी रानी निज घोड़ा से,
गुस्सा भरा बदन में जाय ।
क्रोधित रानी ऐंसे दिख रही,
जैसे दुर्गा पहुंची आय ।।
चढ़ गई रानी गोरे ऊपर,
छाती में दी पैर जमाय ।
गर्दन में तलवार जमा के,
वाडिंग्टन में यूं सम झाय ।।
जल्द छोड़ दे मेरे भारत को,
दूंगी मैं सब को मर वाय ।
माफी मांग कर भगा वाडिंग्टन,
बड़े अफसर पे पहुंचा जाय ।।
जो कुछ गुजरी रन खेतों में,
सो सब हाल दिया सम झाय ।
जान बचा के मैं आया हूं,
मांफी दे दीं आवन्ति माय ।।
प्रथम लड़ाई खत्म हो गई,
अब दूजी का सुनों हवाल ।
नारायणगंज,रामनगर का,
घुघरी शाहपुरा आया ख्याल ।।
(रानी संग दैविक अजूबी घटना और आकाशवाणी)
——–
सेना लेकर चल पड़ी रानी,
नदी किनारे पहुंची आय ।
रास्ता रोक लिया नदियां ने,
वक्त शाम का पहुंचा आय ।।
एक अजूबी सुनों दास्तां,
सुन के भरम सभी मिट जाय ।
पानी बढ़ता है नदिया का,
रानी चरण तक पहुंचा आय।।
पानी आते देख के रानी,
आगे से पीछे हटती जाय ।
हुई आकाशवाणी से बातें,
रेवा मां रहीं विनय सुनाय ।।
छोटी बहना सगी तू मेरी,
सांची भेद देऊं बत लाय ।
भार हरने को तू जन्मी है,
भारत मां की गोद में आय ।।
मैं तो रूप धरी कल्याणी,
निर्मल जल जो रही बहाय ।
पांव पखारूंगी मैं तेरे,
पानी मेरा तुरंत घट जाय ।।
पीछे मत हटना आवन्ति,
तेरा नाम अमर हो जाय ।
कविजन तुझपे लिखेंगे कविता,
अरु तू वतन में पूंजी जाय ।।
पांव पखारी मां रेवा ने,
आवन्ति आगे बढ़ती जाय ।
याद सतायी है बच्चों की,
किला रामगढ़ पहुंची आय ।।
कुछ दिन बीते हैं रियासत में,
बच्चों के संग प्यार-दुलार ।
एक हलकारा रोते आया,
रानी आवन्ति से कहा पुकार ।।
ज़ुल्म गुजारा अंग्रेजों ने,
मण्डला गढ़ को घेरा जाय ।
नौकरशाह,रघुनाथ पुत्र को,
दुश्मन बंदी लिये बनाय ।।
तोप चलाई है दोनों पर,
एक ही संग दिये मरवाय ।।
सुन के रानी ज्वाला हो गई,
लपटें थमीं वदन में नाय ।।
बिना बाप के बच्चे दोनों,
तुरत दईं ननिहाल पठाय ।
सुमर शारदा खेरापति को,
मातृभूमि को शीश नवाय ।।
(रानी आवन्ति की देवहर गढ़ की पहाड़ी में अंतिम लड़ाई)
—–
झपट के चढ़ गई हैं घोड़ा पर,
हाथ में ली तलवार ऊठाय ।
सेनापति उमराव सिंह संग,
देवहर गढ़ में पहुंची जाय ।।
सेना बढ़ रही है रानी की,
बढ़ रहे पैदल अरु असवार ।
यहीं पे सेना अंग्रेजों की,
भारी भरकम आई अगार ।।
भी मुढ़़भेर पहाड़ी ऊपर,
देशभर गढ़ के बीच मंझार ।
रन के बाजे रम-घम बज रहे,
तोपें दग रहीं वे-सुम्मार ।।
दोनों दल मैं मची लड़ाई,
पहाड़िया बही रुधिर की धार ।
अंग्रेजों के लहु से रानी,
पहाड़ी देवी करीं सिंगार ।।
अंग्रेजों की सेना बीच में,
रानी चला रहीं तलवार ।
भारी फौजें अंग्रेजों की,
रानी करने लगी विचार ।।
राजा पहले मरे महलों में,
अरु मैं मरूं यहां पर आय ।
पहला बच्चा पांच बरस का,
दूजा तीन बर्ष कहलाय।।
दोनों पल रहे ननिहाल में,
दुर्गा रक्षा कीजियो जाय ।
सोचती जाये मारती जाये,
लोधी ठाकुर बढ़ती जाय ।।
दांये हाथ तलवार चला रही,
तीर उसी में लागा आय ।
घायल रानी सोच में पड़ गई,
अब तलवार चले हैं नाय ।।
जब ये जान लिया रानी ने,
उनसे रूठ गया करतार ।
अपने हाथों अपने पेट में,
अपनी लई कटारी मार ।।
अंतिम लई विदाई जग से,
करती भारत मां जयकार ।
मार्च अठारह सौ संतावन,
रानी स्वर्ग को गई सिधार ।।
प्रथम लड़ाई आजादी की,
आज सभा में दियो सुनाय ।
‘स्नेही’ आवन्ति कृपा से,
गाथा रच कर के हर्षाय ।।
शिक्षण गुर
रानी आवन्ति बाई लोधी
_______इति__________
रचनाकार-लखन कछवाहा ‘स्नेही’
प्राथमिक शिक्षक
आदिम जाति कल्याण विभाग
मध्य प्रदेश(भारत)