नव वर्ष में अच्छा इंसान बनने की नव प्रेरणा
(कविता/ नज़्म/शायरी)
सलोनी चावला
अब के नव वर्ष में एक प्रण है लिया,
अपनी रूह के ओहदे को ऊँचा किया।
वह क्या जिया जो फूलों में जिया,
जिया जिसने जीवन का ज़हर पिया।
मौसम सुहाने में हर गुल खिला,
गुल वह, जो तूफानों में है खिला।
रुतबे – शोहरत में हजारों उठे,
उठा जो खुदा की नज़र में उठा।
चाल हंस की लेकर कौवा चला,
चला वह जो नेकी के रस्ते चला।
लाखों ने लाखों को बस में किया,
मन अपने को बस में किसने किया ?
कमज़ोरो को जीतकर क्या किया,
जीता जो खुद की खामियों को जीता।
रंग-रूप के सिंगार से क्या होगा,
आत्मा के सिंगार से जो होगा।
मस्जिद मेरे, और मंदिर तेरे,
करते हो क्यों रब के टुकड़े-टुकड़े ?
रब से मिटाई है उसने दूरी,
जिसने परिवार मानी दुनिया पूरी।
रचयिता – सलोनी चावला
अति सुन्दर
लाखों को वस में किया जा सकता है पर अपने हाई मन को बांध कर नहीं रख सकते , लाजवाब बात कही है ! आत्मा का सृंगार और रन के टुकड़े करने की बात मैं कितनी गहराई है ! मेरा साधुवाद
लाखों को वस में किया जा सकता है पर अपने हाई मन को बांध कर नहीं रख सकते , लाजवाब बात कही है ! आत्मा का सृंगार और रब के टुकड़े करने की बात मैं कितनी गहराई है ! मेरा साधुवाद
Very beautiful n poem. Lots of love to you
Above all, excellent