सीताराम पवार: *चिराग जरूर जला लेना*
जो ये अहम तुमने पाला है उसे थपकिया देकर सुला देना
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फुर्सत मिले जिंदगी में तो सबसे पहले ये रंजिशें भुला देना |
समय मिले जिंदगी में तो किसी एक की बिगड़ी जिंदगी बना देना |
सब कुछ मिलता है दुनिया में समय और फुर्सत नहीं मिलते |
जो ये अहम तुमने पाला है उसे थपकिया देकर सुला देना |
आपसी रंजिशो ने दुनिया में कितनों की जिंदगियां उजाड़ दी
तुम पूरी बस्ती नहीं सिर्फ एक घर किसी का बसा देना |
मिली है यह हसीन जिंदगी तो सबसे प्रेम से मिला करो यारों
गर दुश्मन भी तुम्हारा मिल जाए तो उसे दोस्त बना दे देना |
रंजिशे हमारी इस जिंदगी में अक्सर घोर अंधेरा कर देती है |
तुम इस घोर अंधेरे में यारों प्यार का एक चिराग जरूर जला देना |
कभी कभी हंसती खेलती इस जिंदगी में खिजा भी आ जाती हैं
जिंदगी की इस खिजा में तुम ये प्यार का एक फूल खिला देना |
जो उसकी बेवफाई के जख्म तुम्हें मिले हैं वो कब तक खुले रखेंगे
तुम अपनी मोहब्बत से दिल के ये जख्मों पर मरहम लगा
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*भला हो इस गम का जिसने*
मुसीबत में कैसे खुश रहना यह गम ने ही तो हमें सिखाया है
उस गम से क्या डरना जो बिना बुलाए तुम्हारे दिल में आया है |
मेहमान बनाकर रखना उसको वो अपना नहीं पराया है |
जो आया है तो जाएगा उसका हल मत पूछो दुनिया को
हल दुनिया नहीं बताएगी उसको तुम्हारा ही दिल भाया है |
उसके आने से अपने इस दिल की साफ सफाई हो जाएगी
किस्मत वालों के दिल में आता है सयानो ने हमको समझाया है |
इसे देखकर खुशियां डर जाएगी अपनों को भी बुरी लगती थी
तुम्हारी यह खुशी देखकर ही तो अपनों ने तुमको बहुत सताया है |
गम के आने से अपने भी दिल से खुश तो हो ही जाएंगे
गम उनके घर भी जाएगा जिन्होंने गम से हमें मिलाया है |
गम के आने से हमारी हिम्मत अपनेआप ही बढ़ जाती हैं
मुसीबत में कैसे खुश रहना यह गम ने ही तो हमें सिखाया है |
सोए हुए थे अपनी अहम की नींद में गम की खबर नहीं थी हमको
भला हो इस गम का जिसने अहम की वो नींद से हमको जगाया है |
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पितृसत्तात्मक ये समाज में पिता को मूल माना जाता है
माता अगर यह धरती है तो पिता हमारा आसमान होता है |
इसीलिए हर संतान को अपने पिता पर अभिमान होता है|
माता को अगर हम यहां देवी का अवतार समझते हैं
तो फिर पिता हमारे परिवार का भगवान होता है |
पिता अपनी संतान को जिंदगी में लायक बनाता है
इसीलिए पिता का यह जीवन संतान पर कुर्बान होता है |
पिता अपनी ये संतान को पैरों पर खड़ा रहना सिखाता है
संतान के लिए पिता भगवान का वरदान होता है|
पितृसत्तात्मक ये समाज में पिता को मूल माना जाता है
जो अंत में अपनी संतान को देकर जाता है उसका नाम होता है |
पिता ही अपनी संतान की हर इच्छा पूरी करता है
पिता रक्षा कवच होता है पिता इसीलिए महान होता है |
पुत्र जब शिशु अवस्था में होता है ये पिता जवान होता है
पिता जब बूढ़ा हो जाता है तब तो ये पुत्र जवान होता है |
जो माता पिता को सुख देती ऐसी संतान सपूत कहलाती है
जो खुद पिता की आज्ञा न माने ऐसा पुत्र बेईमान होता है |
जिस पुत्र ने भी जिंदगी में माता पिता का दिल दुखाया है
वह पुत्र सपूत नहीं माता पिता के लिए ये शैतान होता है |
जो अपने माता पिता को वृद्धाश्रम का द्वार दिखाते हैं
वह पुत्र नहीं दुश्मन है कलयुग का हैवान होता है |
सीताराम पवार
उ मा वि धवली
जिला बड़वानी
मध्य प्रदेश
9630603339