(नूतन उत्सव)
नए-नए साल है,
नए-नए हाल है,
मस्ती का पल है,
संग में बहार है!
आओ झूमे गाए,
महोत्सव मनाए,
छोड़ कल की बातें,
उन्माद को हटाए!
नए-नए रंग है,
नए-नए रूप है,
जीवन एक झरना है,
बहते भी खूब है!
राहे बनाता है,
खुद ही मिटाता,
अटकते-भटकते वो,
मंजिल तक जाता है!
पत्थर के आने से
रूकता नहीं है,
पर्वत के टकराने से
झुकता नही है!
चीरते ही राहे
वो आगे बढ़ता है,
सारे पीड़ा को
हसकर सहता है!
उसे तो है मिलना
सागर से एक दिन,
रखे चाहे जैसे
प्रियतम की है मर्जी!
सुनील कुमार
मथुराचक(बांका बिहार)