औद्योगिकरण छाया फिजाओं में।
घुल गयी बिष हवाओं में।।
चलो चलें गांवों की ओर,
हम बैठेंगे शजर की छांव में।।
भरी दुपहरी जब सूरज सिर पर ।
डाल चारपाई बैठेंगे मिलजुलकर।।
एक दूजे से बोलेंगे बतियाऐगे।
प्रकृति के संग समय बिताएंगे।।
गांवों में मिलजुलकर रहते सब।
हर समस्याओं का होता हल।।
होगी खेती गोपालन जीवन पेशा।
अपने श्रम पर हो भरोसा।।
मन माटी से जुड़ा होता।
गाॅंवो में अपनत्व भरा होता।।
ऐसी कूलर से उकताया मन।
प्रकृति संग स्वस्थ होगा तन मन।।
सुषमा सिंह
औरंगाबाद