स्वर्ग नरक का द्वार यही है
सौ बातों का सार यही है
स्वर्ग नरक का द्वार यही हैं
कुदरत के कानून जगत में
बड़े निराले होते हैं।
राजा हो या रंक सभी
निज कर्मों के फल ढोते हैं।
सुख दुख का आधार यही है।
स्वर्ग नरक का द्वार यही है।
कोई सोता फुटपाथों पर
कोई महल अटारी में।
कोई भोगे राज ठाठसी
कोई पड़ा बीमारी में।
कर्मों का प्रतिकार यही है।
स्वर्ग नरक का द्वार यही है।
कोई आला अफसर नेता
कोई कारागार पड़ा।
कोई है मोहताज अन्न का
कोई मांगे भीख खड़ा।
सब के कारोबार यही है।
स्वर्ग नरक का द्वार यही है।
गीता में उपदेश लिखा है
कर्म प्रधान है यह बतलाया।
जो जैसा बोवेगा वैसा
सदा वही प्रतिफल पाया।
इस जीवन का सार यही है।
स्वर्ग नरक का द्वार यही है।
संत कुमार सारथि नवलगढ़