ग्राम कवि सन्तोष पाण्डेय सरित गुरु जी-तेरा कातिक

🌸🌸तेरा कातिक 🌸🌸

तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो l
साँसि लेइ का दम ना पाई, बिसरी हइ कविताई हो ll

काटी रेज कांसि अउ भुन्डा,
चेचुरा गोंदिला हइ सुसुआन l
गाजर घास अऊ जरबइला,
सगले खेते मा अभुआन ll

झुरिया रोपा लेउ पकी हइ, ओमा लगी कटाई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो ll

तोरा बिगड़ा हबइ मैर के,
हइ जमनाई ठीक नहीं l
टेकटरहा खुब करत तगादा,
लागत हमका नीक नहीं ll

डग्गा ढीह परे हां संचइ, कसिके बिआ गड़ाई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो ll

चउमस बँधवा फोरि दीन हइ,
पोखरी सरी परी फुरताल l
कक्कूबा करिआसन जोतइ,
कहिअउ होई रिन्धि बबाल ll

चली तड़ातड़ कहिअउ लाठी,जइहीं भूत भगाई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो ll

गउना केर बड़े मनई सब,
जरबा कस अरझाबत हां l
जहाँ पिसान उड़इ न भइया,
जैतबा घाल उड़ाबत हां ll

दारू मुर्गा मा भइ गिरबी, सगली बड़मनहाई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो ll

बिके सिपाही अउर दरोगा,
बिके एस डी एम, पटवारी l
बिके हमा तहसीलदार जी,
बिके परगना अधिकारी ll

काली कोट नोट मागत हइ, बिरबा चला हलाई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे,
तबसे का बतलाई हो ll

आसउं केर सिआरी मांहीं,
ओइसउ कउनउ भास नहीं l
गिरी न बूँदी “सरित” सरग से,
हइ एहू के आस नहीं ll

सुरसा के मुँह जइसन बाढ़त, रोज रोज मंहगाई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो ll

भारत आगे जाइ रहा हइ,
भा पाछे मजदूर किसान l
जिअइ देत न मरइ देत हइ,
इआ किसानी बेढ़ सकान ll

हे हरि हर शारदा भवानी, तोहइन का गोहराई हो l
तेरा कातिक लागा जबसे, तबसे का बतलाई हो ll

ग्राम कवि सन्तोष पाण्डेय “सरित” गुरु जी गढ़ रीवा (मध्यप्रदेश) 8889274422 /8224913591

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