नये वर्ष की आहट
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नन्हें कदमों की पदचाप,
इन तारीखों में हर वर्ष,
सुनते आया हूँ,
बहुत ही आह्लादकारी,
रोमांचक भी लगा करता है,
किन्तु पिछली बार के,
तिक्त अनुभवों का स्मरण,
हर बार झिंझोड़ देता है,
दो हजार बाइस,
क्या तुम भी अपने अग्रज के,
नक्शेकदम पर चलोगे!!
हम मानव हैं,
सदा से आशावान प्राणी,
अगर तुम्हारे अंदर भी,
कलुष भरा होगा,
तो हम निबट लेंगे,
जैसे प्राणों पर खेलकर,
दो हजार बीस से निबट लिया,
और दो हजार इक्कीस से,
निबटना जारी है।
आओ!
स्वागत है तुम्हारा,
आगत का स्वागत करना,
हमारी सनातन संस्कृति है,
उसी पुराने जोशोखरोश से,
हम स्वागत करेंगे तुम्हारा,
और हार्दिक कामनाएँ होंगी,
कि तुम सुशील, विनयी,शांतिप्रिय,
और लोक कल्याणकारी,
भावनाओं को अपने साथ,
समाहित करते हुए,
अवश्य ही लाओगे।
–उदयशंकर उपाध्याय–, गिरिडीह,
झारखंड।